रविवार, 30 अक्तूबर 2016

शौर्य शिखर के दीपों से -

दीपोत्सव की हृदय से बधाई व शुभकामनाएं मित्रों ! जीवन उजाले से जगमगाता रहे तमस तिरोहित हो ,जा कही किसी गह्वर । आत्मबल आधार पाये दया करुणा प्रेम सहकार संस्कार बन जाए । हृदय से कामना ... -

अर्पित कर एक दीप अंधेरे को ,
तम का साम्राज्य कुछ तो कम होगा -
तज कंगन शमशीर लिया कर मैंने 
मातृभूमि का वेदन कुछ तो कम होगा -
सरहद से अब प्रीत हमारी वीर
ले हाथ शीश सीमा पर उत्सव होगा -

उदय वीर सिंह

मेरे घर का उजाला था,


मेरे घर का उजाला था, 
सितारों का हो गया 
दामन का मेरे  फूल था ,
हजारों का हो गया -
आंखे उडिका विच , 
 लबों से सवाल गुम 
बाहें  मेरी छोड़ अब  , 
दीवारों का हो गया -
वतन की हिफाजत में ,
निसार गया जिंदगी 
जा शहीदी की सेज  ,
जांनिसारों का हो गया -

उदय वीर सिंह 



गुरुवार, 27 अक्तूबर 2016

सरहद मेरी मीत बन गई


बड़भागी हूँ की सरहद 
मेरी मीत मिल गई -
जिसकी तलाश जन्मों से 
वो प्रीत मिल गई -
सुर साज़ों की गलियों से 
स्वर मानस न भाए 
देश प्रेम के अधरों को 
शुभ गीत मिल गई -
जीवन वारा वलि वेदी पर 
सिर कटा पर झुका नहीं 
नश्वर जीवन सफल हुआ 
कुल गौरव को जीत मिल गई -

उदय वीर सिंह 

मंगलवार, 25 अक्तूबर 2016

कुछ गुजर गई

कुछ गुजर गई  है जिंदगी 
कुछ गुजर रही है आज भी-
सूरज  तारे चाँद  प्रश्नगत 
ले प्रश्न खड़े हैं चिराग भी -
किश्तों में कुछ बिखर गई 
कुछ बिखर रही है आज भी -
कुछ संवारा काल  की धुन 
कुछ की नेह  आवाज भी -
प्रेम का सौदा  किया जब 
तख्त छूटा,  ताज भी -
जब घरौंदा नम हुआ 
पर गये  परवाज़ भी -

उदय वीर सिंह 

सोमवार, 24 अक्तूबर 2016

जो खिराज ले गया ...

शहीदी क्या होती है पुछने वाला 
राष्ट्र वादी  का खिताब ले गया -
देश भक्ति का लंबरदार अपनी 
देश-भक्ति का हिसाब ले गया -
पीता रहा चरणामृत लुटेरों का 
अतुल्य देशप्रेमी का ताज ले गया -
मरे जीये बे-वसन वतनपरस्त 
मौज मे आज भी जो खिराज ले गया -

उदय वीर सिंह 

रविवार, 23 अक्तूबर 2016

लौटें न हंजू कभी


मिलता जीवन कभी ,
शाखों से टूटकर -
लौटें हंजू कभी 
आँखों से छुट कर -
बसिया  दर्पण कभी 
पत्थर से टूटकर
सहरा में बादल आए
कसमें वादे तोड़कर
वो वापस न आया कदी 
गया दिल तोड़कर -

उदय वीर सिंह 

गुरुवार, 20 अक्तूबर 2016

मत पुछो वीर कि बुरा लगता है


मत पुछो वीर कि बुरा लगता है
सावन के अंधे को सदा हरा लगता है

चाँद की बिसात क्या सूरज उगाये मैंने
धरती ही नहीं आसमान भी डरा लगता है

जिद है या खुद को बहलाने का प्रयास 
झूठ भी कितना खरा लगता है -

सत्ता सियासत का बाजार बे मुरौअत
बेटा भी वलि का बकरा लगता है -

खामोश हो गए ओढ़े कफन ए तिरंगा
रेशमी राजनीति को मसखरा लगता है -


उदय वीर सिंह

बुधवार, 19 अक्तूबर 2016

जितना बड़ा आँचल हुआ

जितना बड़ा आँचल हुआ उतना समान आया 
बांटा  जितना नेह हमने ,उतना ही मान पाया -

बहे लोर  नैन जितना,  टूट  अपने तलाशे हैं 
खेरू- खेरू जींद ,विचों  अपना भी नाम आया -

सोचा न किसने अपना,  दामन छुड़ाया वीर 
गुमनाम राहों ने भी, आखिर मुकाम पाया -

उदय वीर सिंह