जलते अंतर्मन से कैसे
अमृत वर्षा हो पाई -
अभिशप्त हृदय की भाषा कब
मधुर गीत में ढल पाई
बोई पीड़ा की फसलों से
यश खुशहाली कब आई -
वैद्य हकीम बसते बहुतेरे
पीर पर्वत सी हो आई -
घाट देवालय, मधुशाला के भी
लगी प्यास न बुझ पाई -
- उदय वीर सिंहb
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