झंझावात आए तो, कोई साथ न था
मांगी मदद पर आगे कोई हाथ न था
रहबर भी चले गए अनसुना करके
नीचे धरती मेरे ऊपर आकाश न था -
ख़िज़ाँ से दूर गुल गुलशन आबाद रहे
इंसानियत को जगह मांगी थोड़ी
सजा मुकर्रर होती गई बेहिसाब
जिसमें मेरा कोई अपराध न था -
उदय वीर सिंह
मांगी मदद पर आगे कोई हाथ न था
रहबर भी चले गए अनसुना करके
नीचे धरती मेरे ऊपर आकाश न था -
ख़िज़ाँ से दूर गुल गुलशन आबाद रहे
इंसानियत को जगह मांगी थोड़ी
सजा मुकर्रर होती गई बेहिसाब
जिसमें मेरा कोई अपराध न था -
उदय वीर सिंह
1 टिप्पणी:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (26-03-2017) को
"हथेली के बाहर एक दुनिया और भी है" (चर्चा अंक-2610)
पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
एक टिप्पणी भेजें