शुक्रवार, 14 अप्रैल 2017

बबूल को अमलतास लिखते रहे -

सदियाँ अभिशप्त ती रहीं  रहीं 
रंगमहल का इतिहास लिखते रहे 
तड़फता रहा अँधेरों में जीवन 
उजला उजला आकाश लिखते रहे -
धर्म और देश सतत बिखरता रहा 
बिखेरने वालों को खास लिखते रहे -
आंसू वेदन अन्यायी अनुशीलन था 
कामसूत्रीय परिहास लिखते रहे -
पतझर वसंत का भेद न देखा 
बबूल को अमलतास लिखते रहे -

उदय वीर सिंह 

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