सोच तो है पर संकोच क्यों है
वीर कातिल भी निर्दोष क्यों है -
उन्माद की आँधी क्यों चली
मासूम दिलों में असंतोष क्यों है -
इल्म का दर भी कातिलाना है
मुर्दा भी सरफरोश क्यों है-
जो वतन का है न इंसानियत का
मरने पर अफ़सोस क्यों है -
उदय वीर सिंह
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