शनिवार, 2 दिसंबर 2017

उलझो न उलझाओ ....

शोला नहीं हूँ नीर मलय
मुझे जलना नहीं आता
शराब नहीं प्याला हूँ मैं
मुझे ढलना नहीं आता-

रिश्ता हूं मैं वस्त्र नहीं
मुझे बदलना नहीं आता
शफ़ीना नहीं शाहिल हूं
मुझे चलना नहीं आता -

एक दिल हूं आंख नहीं
मुझे रोना नहीं आता -
पुष्प हूं गिरगिट नहीं मैं
रंग बदलना नहीं आता -

हवा हूं मैं मौजें नहीं
मुझे लौटना नहीं आता -
कलम हूं बाचक नहीं
लिखता हूं पढ़ना नहीं आता -

उदय वीर सिंह 




कोई टिप्पणी नहीं: