शुक्रवार, 31 मार्च 2017

जय होने क अर्थ नहीं

जय  होने क अर्थ नहीं
रण हारा सो हारा है -
हाथों को पतवार  बना
सरिता के पार किनारा है
डूबा सूरज उगता कल
कल क साम्राज्य तुम्हारा है
खींच प्रत्यंचा शर संधान करो
धुन्ध के पीछे उजियारा है -

उदय वीर सिंह 

मंगलवार, 28 मार्च 2017

संवेदन भी खैरात नहीं हैं -

कविता है हालात  नहीं हैं
समस्याएँ हैं सवालात नहीं हैं
हैं घूम रहे छुट्टा पशुओं सम
अपराधी हैं हवालात नहीं हैं -
खामोश हुये लब कैसे कैसे
पीड़ा है खयालात नहीं हैं -
बहता खून है सड़कों पर
रोगी को इमदाद नहीं हैं -
रो रो मांगे  खैर मुकद्दर 
संवेदन भी खैरात नहीं हैं -

उदय वीर सिंह 

रविवार, 26 मार्च 2017

मुश्किल नहीं हैं रोटियाँ -

पीर निकले चीर कर जड़ पर्वतों की चोटियाँ
हाथ में औज़ार हो तो मुश्किल नहीं हैं रोटियाँ -
मुमकिन नहीं हर गाँव मजरा राजपथ के नेड़ हो
हर राजपथ को जोड़ देती हैं पगडंडियाँ -
जब जलेगा दीप तो हर दर उजाला खास है
जो जलेगा दिल उदय बे-रोशन रहेंगी कोठियाँ -
उदय वीर सिंह 


गुरुवार, 23 मार्च 2017

जिसमें मेरा कोई अपराध न था -

झंझावात आए तो, कोई साथ न था
मांगी मदद पर आगे कोई हाथ न था
रहबर भी चले गए अनसुना करके 
नीचे धरती मेरे ऊपर आकाश न था -
ख़िज़ाँ से दूर गुल गुलशन आबाद रहे
इंसानियत को जगह मांगी थोड़ी
सजा मुकर्रर होती गई बेहिसाब
जिसमें मेरा कोई अपराध न था -

उदय वीर सिंह 

बुधवार, 22 मार्च 2017

ये वक्त भी आना था

इश्तिहारों से पीर जानी जाए
ये वक्त भी आना था 
दिल टूटा हथौड़े इतने लगे 
संबंध कागज पर निभाए जाएँ 
ये वक्त भी आना था 
कंधे खाली नहीं कोमल हाथों से 
अर्थी ठेके पर उठाई जाए 
ये वक्त भी आना था -
इंसानियत जाए कोई फर्क नहीं 
नफरत सितम न जाए 
ये वक्त भी आना था -
जन्म दिन पर आएगी माँ बाप की 
शुभ आशीष अनाथालय से 
ये वक्त भी आना था -



सवेरा सो गया जैसे -

बहुत ही लंबी हो गई रात
सवेरा सो गया जैसे -
गया था कहकर आने को 
रास्ता खो गया जैसे -
जले चिराग बुझने को 
किसी का हो गया जैसे -
हो गई पीर बरगद सी 
वेदना बो गया जैसे -
दिशाएँ हैं वहीं अटल अभी 
सूरज  बदल गया जैसे -

उदय वीर सिंह 


मंगलवार, 14 मार्च 2017

अर्थी ठेके पर उठाई जाए

इश्तिहारों से पीर जानी जाएगी 
ये वक्त भी आना था 
दिल टूटा हथौड़े इतने लगे 
संबंध कागज पर निभाए जाएँ 
ये वक्त भी आना था 
कंधे खाली नहीं कोमल हाथों से 
अर्थी ठेके पर उठाई जाए 
ये वक्त भी आना था -
इंसानियत जाए कोई फर्क नहीं 
नफरत सितम न जाए 
ये वक्त भी आना था -
जन्म दिन पर आएगी माँ बाप की 
शुभ आशीष अनाथालय से 
ये वक्त भी आना था -

उदय वीर सिंह 

रविवार, 12 मार्च 2017

जीते या हारों का इतिहास देखिये

जीते या हारों का इतिहास देखिये 
पैसे का खेल, फेल या पास देखिये -
उज्र नहीं है हिंदस्तान की मुफ़लिसी पर 
बैठे बार में उनका परिहास देखिए -
छप्पर,बे-घर उनकी राजनीति के केंद्र 
राजपथों पर उनका आवास देखिये -
बेबस ही रह गया किसान मजदूर शिक्षक 
राजनीति के पुजारियों का विकास देखिये -
मिल जाए जैसे भी संरक्षण का चौराहा 
बना लेते एक नया बाइ-पास देखिये -
उदय वीर सिंह 

शनिवार, 11 मार्च 2017

मूल्यों का अवसान नहीं हो

मूल्यों का अवसान नहीं हो
व्यतिरेक कहीं प्रतिमान हो
आदर्श कहीं अभिमान नहीं हो
धूल-धूसरित सम्मान हो -
पीड़ा के संग संवेदन सरिता
वंचित का अपमान हो
प्रत्याशा का प्रतीकार नहीं हो
सृजन कर्म व्यवधान हो
मद भेद कहीं स्थान पाए
सत्य-पथ में विश्राम हो
सहकार समन्वय गतिहीन नहीं
घर लिप्सा का निर्माण हो
सीमा-विहीन अधिकार नहीं हो
शमशीर कहीं भगवान हो
प्रेमसंजीवन अभिशप्त नहीं हो
मिथ्या विद्वेष महान न हो -
उदय वीर सिंह


बुधवार, 8 मार्च 2017

गीता हैं पुराण हैं हमारी बेटियाँ

नारी शसक्तिकरण को शुभकामनायें ... !

"तनया " बेटियों को समर्पित मेरी पुस्तक से नारी की प्रतिष्ठा में ..
गीता हैं पुराण हैं हमारी बेटियाँ
पूज्य ग्रन्थों का संज्ञान है हमारी बेटियाँ
पुजा का प्रसाद हैं संकल्प की संवेदना
कई जन्मों का सम्मान हैं हमारी बेटियाँ
दुर्दिन की सैश आहात छोड़कर स्वजन चले
उस वक्त की आधार हैं हमारी बेटियाँ
गंगा हैं यमुना हैं सतलज चिनाब हैं
मंगल मलय समीर हैं हमारी बेटियाँ
मंदिर की मुस्कान है मस्जिदी अजान हैं
सत्कर्म की पहचान है हमारी बेटियाँ
न द्वेष बांटती हैं न द्रोह बांटती हैं
सिर्फ स्नेह बांटती हैं हमारी बेटियाँ -.
उदय वीर सिंह .


सोमवार, 6 मार्च 2017

जीवन के सफर में तुम रोए

जीवन के सफर में तुम रोए 
हम रोये तो क्या हुआ -
जीवकी डगर ही अंधी है 
दिल खोये तो क्या हुआ 
पाँव थके जब शाम हुई 
गम धोये तो क्या हुआ 
जीवन मे चाहा फूल उगें 
कांटे उगे तो क्या हुआ -
नजरानों का मौसम है 
कुछ पास नहीं तो क्या हुआ 

रविवार, 5 मार्च 2017

तुमको खुतबा खिताब....

तुमको खुतबा खिताब
मिल जाएंगे
हमे मयस्सर नहीं चिराग
तुमको आफताब
मिल जाएंगे
कहते हो तुम्हारी जमीन में
कांटे नहीं उगते 
ढूंढो जरा गौर से  वीर एक नहीं 
हजार मिल जाएगे ....
तुम्हें गिला है मेरी आवाज से ,
खरीदोगे तो बहुत बे-आवाज
मिल जाएंगे 
उदय वीर सिंह 


गुरुवार, 2 मार्च 2017

बोई पीड़ा की फसलों से

जलते अंतर्मन से कैसे 
 अमृत वर्षा हो पाई -
अभिशप्त हृदय की भाषा कब 
मधुर गीत में ढल पाई 
बोई पीड़ा की फसलों से 
यश खुशहाली कब आई -
वैद्य हकीम बसते बहुतेरे
पीर पर्वत सी हो आई -
घाट देवालय, मधुशाला के भी 
 लगी प्यास बुझ पाई -

- उदय वीर सिंहb

युद्ध विकल्पविहीनता की स्थिति है

युद्ध विकल्पविहीनता की स्थिति है और विकल्प बंद नहीं हैं  
** विजेता की सेना पराजित के मानमर्दन स्वरूप उसकी स्त्रीयों का बलात्कार करता रहा है [इतिहास गवाह है ].... और आज स्वयंभू विजेता वही करने पर आमादा हैं  
**अरे सुखासिनों युद्ध की विभीषिका क्या होती है पीड़ित परिवारों पीड़ित देशों से पुछो ,अगर आँखों में नमीं है उनकी वेदना को महसूस करो शायद अवगत हो सको
** युद्ध ! रंगमहल की महफिल नहीं ,बहते रक्त मवाद आँसू भूख दर्द रुदन असमर्थता विपन्नता याचना यातना अपमान की पराकाष्ठा है युद्ध के उन्मादियों तुम अपने को कहाँ पाते हो आकलन स्वयम करो तो अच्छा है  
युद्ध पीड़ित परिवारों का हाल आज भी क्या है उनके मेडल बिक गए दी गई सहायता राशि आज भी लंबित है जीविकार्थ दी गई जमीने प्रतिष्ठान आज भी लंबित हैं ...... संवेदना कहाँ विलोप हो गई कभी तो सोचो  
** युद्ध में शहीदी किसी राजघराने से नहीं, किसी तथा कथित राजनीतिक परवारों से नहीं, किसी व्यवसायिक अद्योगिक घरानों से नहीं पाई जाती निःसन्देह सामान्य परिवारों से है युद्ध शासकों का सगल है अपनी सत्ता बचाए रखने लिए 
आओ एक पहल करते हैं अगर राष्ट्र प्यारा है तो प्रत्येक परिवार से एक सदस्य राष्ट्र हीत 10 साल तक बिना किसी पारिश्रमिक लिए अर्पित करते हैं मैं दोनों वाम दाम का आव्हान करता हूँ  
** राष्ट्र सेवा राजनीति नहीं है ,षडयंत्र नहीं है अर्पण का प्रतिदान नहीं है मुंह देखी गाथा नहीं कर्म की अनुषंशा हैअमिट हस्ताक्षर है केवल और केवल सर्वहित का मंगल संकल्प है,जिससे युद्ध प्रलापियों का कोई वास्ता नहीं
है  
जे प्रेम खेदन का चावो ,शिर धर तली गली मोरे आवो 
जे मरग पैर धरिजे शीश दिजे कान्ह कीजे { गुरु गोबिन्द सिंह }
उदय वीर सिंह