पीर प्रेम परिहास बने ---- !
प्यासा मांगे पानी वीर
मदिरा का गान सुनाते हो
अस्मत का चीरहरण करके
रेशम के वस्त्र कजाते हो -
वेदन की व्याख्या जिह्वा से
मधुरस घोल बिलखते हो
रिसते घावों का संज्ञान नहीं
मरने पर मान दिखाते हो -
आँखों में आश खुशहाली की
विश्वास हृदय में ले बैठा
मरुधर में गंगा उपवन होंगे
याचक को ज्ञान बताते हो -
घाव हथेली बहते बहुतेरे
फिर भी हाथ नहीं रुकते
दुर्दिन दुर्भिक्ष दैन्यता तेरी
उसको प्रतिदान बताते हो -
कर्म करो फल आशा कैसी
मैं प्रतिछाया तेरी काया का
अमावस की रात अंधरों में
तज दूर बहुत हो जाते हो -
करते गल संवेदन की
वेदन का किंचित भान नहीं
दया प्रेम करुणा की शाला
नेह उद्यान जलाते हो-
उदय वीर सिंह
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें