बुधवार, 2 मई 2018

पीर प्रेम परिहास बने ...!

पीर प्रेम परिहास बने ---- ! 
प्यासा मांगे पानी वीर 
मदिरा का गान सुनाते हो 
अस्मत का चीरहरण करके 
रेशम के वस्त्र कजाते हो -
वेदन की व्याख्या जिह्वा से 
मधुरस घोल बिलखते हो 
रिसते घावों का संज्ञान नहीं 
मरने पर मान दिखाते हो -
आँखों में आश खुशहाली की 
विश्वास हृदय में ले बैठा 
मरुधर में गंगा उपवन होंगे 
याचक को ज्ञान बताते हो -
घाव हथेली बहते बहुतेरे 
फिर भी हाथ नहीं रुकते 
दुर्दिन दुर्भिक्ष दैन्यता तेरी 
उसको प्रतिदान बताते हो
कर्म करो फल आशा कैसी 
मैं प्रतिछाया तेरी काया का 
अमावस की रात अंधरों में
तज दूर बहुत हो जाते हो -
करते गल संवेदन की 
वेदन का किंचित भान नहीं 
दया प्रेम करुणा की शाला 
नेह उद्यान लाते हो-
उदय वीर सिंह





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