गुरुवार, 31 मई 2018

लोकतन्त्र एक सुंदर शब्द ,


एक वो थे लोकतन्त्री  दरवेश 
 एक ये भी लोकतन्त्र के राज रहे 
लोकतन्त्र एक सुंदर शब्द ,
भाव सुंदरतम साज रहे -
संवेदन करुणा सहकार मरे 
समर्थ मनोरथ पाल रहे -
ज्ञानी गुणी गतिशील मनीषी
स्तब्ध निःशब्द अवसाद में हैं
हुए तिरोहित तत्व मनुखी
दैत्य उदण्ड द्वारपाल बने -
लगते ताले मूलभूत अधिकारों पर
प्रलाप प्रलंभ की छाया है
कायर कामी कपटी लोभी
अपनी परिभाषा में ढाल रहे -
गौरव शौर्य यश प्रेम प्रतिष्ठा
विनिमय के पलड़े झूल रहे
जिसकी लाठी भैंस उसी की
नैतिकता कुएं में डाल रहे -
उदय वीर सिंह

कोई टिप्पणी नहीं: