साधनों की सेज सोना चाहता है
वेदना के नाम रोना जानता है
धुप की चादर मिली क्या
कुंद मानस हो गया
क्षितिज पर बृक्ष का संहार
नभ में छाँव बोना चाहता है -
तमस में दीप का उपक्रम नहीं
खोजता है पथ सुघर
परायी कंध पर रख बोझ अपना
बोझ ढोना चाहता है -
बेचकर गंतव्य पथ
पग महावर साज ली
क्रंदन कृपा की ओट ले
गंतव्य पाना चाहता है -
उदय वीर सिंह
1 टिप्पणी:
आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ०९ जुलाई २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
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