क्या रह जाएगा ये देश
हिन्दू मुसलमान होकर
दरख़्त परिंदे भी रह जाएँगे
क्या धर्म की पहचान होकर -
चूल्हे की आग भी बखरी
तीज त्यौहार कुफ्र हो जायेंगे
किताबें दुश्मनी का चश्म
या रहेंगी नफरती मकान होकर -
भूल गए हैं मजहब अपना
ये मजहबी लम्बरदार
शायद इनको पसंद नहीं
रहना एक इंसान होकर -
क्या एक इश्वर काफी नहीं
सृजन और संहार के लिए
क्यों ब्रह्माण्ड हथियाना चाहे
आखिर एक मेहमान होकर -
दर्द का कोई धर्म है तो बता
बता है कोई प्रेम की जाति
नफ़रत का कोई रंग नहीं
क्यों जीना बदगुमान होकर -
कभी परिंदों को तरुवर ने
आश्रय से इनकार किया
या फूलों ने धर्म पूछकर
इत्रों का व्यापार किया -
प्राण वायु क्या धर्म पूछ कर
शहर गाँव घर बहती है
पंथ पूछ कर निर्मल नदियाँ
तृप्त जीवन को करती हैं -
प्रीत अमन के बाग़ संवारें
कालजयी बागवान होकर -
उदय वीर सिंह
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