रविवार, 15 जुलाई 2018

क्या रह जाएगा देश...

क्या रह जाएगा ये देश 
हिन्दू मुसलमान होकर 
दरख़्त परिंदे भी रह जाएँगे 
क्या धर्म की पहचान होकर -
चूल्हे की आग भी बखरी 
तीज त्यौहार कुफ्र हो जायेंगे 
किताबें दुश्मनी का चश्म 
या रहेंगी नफरती मकान होकर -
भूल गए हैं मजहब अपना 
ये मजहबी लम्बरदार 
शायद इनको पसंद नहीं 
रहना एक इंसान होकर -
क्या एक इश्वर काफी नहीं 
सृजन और संहार के लिए 
क्यों ब्रह्माण्ड हथियाना चाहे 
आखिर एक मेहमान होकर -
दर्द का कोई धर्म है तो बता 
बता है कोई प्रेम की जाति 
नफ़रत का कोई रंग नहीं 
क्यों जीना बदगुमान होकर -
कभी परिंदों को तरुवर ने 
आश्रय से इनकार किया 
या फूलों ने धर्म पूछकर 
इत्रों का व्यापार किया -
प्राण वायु क्या धर्म पूछ कर 
शहर गाँव घर बहती है
पंथ पूछ कर निर्मल नदियाँ 
तृप्त जीवन को करती हैं -
प्रीत अमन के बाग़ संवारें 
कालजयी बागवान होकर -
उदय वीर सिंह



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