गुरुवार, 12 जुलाई 2018

सामाँन नहीं बन पाया हूँ


इंसानों की बस्ती में रह
इंसान नहीं बन पाया हूँ
बिकने खातीर मोल हाट
सामान नहीं बन पाया हूँ
जीवन की खुशियों का
पनघट पीकर मरुधर सोया
जीवन को जीवन दे पाँऊ
नखलिस्तान नहीं बन पाया हूँ -
सुखी आँखों से ख्वाब गए
आरत मन अकुलाता है
टूटे दिल की पीर बहुत
अरमान नहीं बन पाया हूँ -
उदय् वीर सिंह





कोई टिप्पणी नहीं: