बुधवार, 1 अगस्त 2018

चल बैजयंती कंधे पर ....


ले चल बैजयंती कन्धों पर
अपनी हार देखता हूँ -
जीते नेता हारी जनता
मैं हर-बार देखता हूँ -
नारों में भारत एक आँगन जैसा
आज कई दिवार देखता हूँ -
वादों के झुरमुट वादों के जंगल
वादों का बाजार देखता हूँ -
खाली नींव प्रासाद सपनों का
संगमरमरी शिलान्यास पट
बार बार देखता हूँ -
हरिया आज भी हरिया है
गब्बर आज भी गब्बर हैं
जो हमसफर थे अंग्रेजों के
आज मुल्क के रहबर हैं -
पहने हार सरीखा फांसी का फंदा
अमर शहीदों का प्यार देखता हूँ -
आँखों में आँसू मानस ठगा हुआ
सपनों का व्यापार देखता हूँ -
हाथों ही नहीं कपड़ों में देखा
पुष्प मनोरम सजे हुए
उन हाथों में आज सजी दो धारी
नंगी तलवार देखता हूँ -
रस छंद अलंकार व्याकरण भाषा में
आँखों में झूठा प्यार देखता हूँ -
छोड़ गए मैदान जंग की
धर हाथ में हाथ मुस्काने वाले
जब फतह मिली सिंहासन पर
उनका अधिकार देखता हूँ -
उदय वीर सिंह


7 टिप्‍पणियां:

'एकलव्य' ने कहा…

आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ०६ अगस्त २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/



टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।



आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'



सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वाह

रेणु ने कहा…

हरिया आज भी हरिया है
गब्बर आज भी गब्बर हैं
जो हमसफर थे अंग्रेजों के
आज मुल्क के रहबर हैं -
पहने हार सरीखा फांसी का फंदा
अमर शहीदों का प्यार देखता हूँ -
आँखों में आँसू मानस ठगा हुआ
सपनों का व्यापार देखता हूँ -
!!!!!!!! बहुत ही कटु सत्य उद्घाटित कर दिए आपने अपनी रचना में | सादर शुभकामनायें आदरणीय उदय जी |

रेणु ने कहा…

हरिया आज भी हरिया है
गब्बर आज भी गब्बर हैं
जो हमसफर थे अंग्रेजों के
आज मुल्क के रहबर हैं -
पहने हार सरीखा फांसी का फंदा
अमर शहीदों का प्यार देखता हूँ -
आँखों में आँसू मानस ठगा हुआ
सपनों का व्यापार देखता हूँ -!!!!!!!!! वाह आदरनीय बहुत ही कटु सत्य उद्घाटित कर दिए आपने अपनी रचना में | सादर शुभकामनाएं !!!!!!!!

रेणु ने कहा…

हरिया आज भी हरिया है
गब्बर आज भी गब्बर हैं
जो हमसफर थे अंग्रेजों के
आज मुल्क के रहबर हैं -
पहने हार सरीखा फांसी का फंदा
अमर शहीदों का प्यार देखता हूँ -
आँखों में आँसू मानस ठगा हुआ
सपनों का व्यापार देखता हूँ -!!!!!!!!! वाह आदरनीय बहुत ही कटु सत्य उद्घाटित कर दिए आपने अपनी रचना में | सादर शुभकामनाएं !!!!!!!!

रेणु ने कहा…

हरिया आज भी हरिया है
गब्बर आज भी गब्बर हैं
जो हमसफर थे अंग्रेजों के
आज मुल्क के रहबर हैं -
पहने हार सरीखा फांसी का फंदा
अमर शहीदों का प्यार देखता हूँ -
आँखों में आँसू मानस ठगा हुआ
सपनों का व्यापार देखता हूँ -!!!!!!!!! वाह आदरनीय बहुत ही कटु सत्य उद्घाटित कर दिए आपने अपनी रचना में | सादर शुभकामनाएं !!!!!!!!

रेणु ने कहा…

हरिया आज भी हरिया है
गब्बर आज भी गब्बर हैं
जो हमसफर थे अंग्रेजों के
आज मुल्क के रहबर हैं -
पहने हार सरीखा फांसी का फंदा
अमर शहीदों का प्यार देखता हूँ -
आँखों में आँसू मानस ठगा हुआ
सपनों का व्यापार देखता हूँ -!!!!!!!!! वाह आदरनीय बहुत ही कटु सत्य उद्घाटित कर दिए आपने अपनी रचना में | सादर शुभकामनाएं !!!!!!!!