शनिवार, 25 अगस्त 2018

बेटियाँ राष्ट्र संस्कृति की शिक्षिका हैं ....

बालिका गृहों के नाम अपनी गल - बात लिखता हूँ 
मानवीयता की देह पर हैवानियत का आघात लिखता हूँ 
पशु बना इंसान संवेदना मार, अपने जज्बात लिखता हूँ -
बदलेगी सूरत एक दिन बेटियों का नवल प्रभात लिखता हूँ -
ओढ़ कर खोल दया करुणा का , आत्मा नोचने वालों
देकर पनाह जीवन को अंतहीन दर्द बेबसी लाचारी देने वालो
बेटी नारी ही नहीं संस्कृति समाज राष्ट्र को लांछित किया है
अधम नीच नर पिशाचो तेरे आघातों का प्रतिघात लिखता हूँ -
उदय वीर सिंह

2 टिप्‍पणियां:

शिवम् मिश्रा ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, अकेले हम - अकेले तुम “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

Onkar ने कहा…

बहुत खूब