मित्रों ! ह्रदय से आभार ...
आपकी मित्रता कमल जैसी है
मरुस्थल में बृक्ष व फल जैसी है
अंधेरों में छोड़ देती है परछाईं
आपकी मित्रता संबल जैसी है -
मानस में दुर्गन्ध की जगह नहीं
पीत मित्रता पावन संदल जैसी है
प्रतीक्षा नहीं करती पुकार की
सहेज ले नीर आँचल जैसी है -
मरुस्थल में बृक्ष व फल जैसी है
अंधेरों में छोड़ देती है परछाईं
आपकी मित्रता संबल जैसी है -
मानस में दुर्गन्ध की जगह नहीं
पीत मित्रता पावन संदल जैसी है
प्रतीक्षा नहीं करती पुकार की
सहेज ले नीर आँचल जैसी है -
उदय वीर सिंह
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