किसी को देव किसी को
दानव बना दिया है
किसी ने नहीं कहा अपने को
मानव बना लिया है-
अनेकों सोते कम पड़ते है
प्यास बुझाने को
एक ज्वालामुखी ही काफी है
जीवन की रीत मिटाने को -
भरा है आँखों में नीर
हृदयमें ज्वालामुखी क्यों है
नंगी लाश से पूछते हो
क्या अवशेष बताने को -
शोक गीतों में रंग ढूंढने
चले रस अलंकार के गायक
संवेदन के पंख कटे जब
क्या गति मिली उड़ानों को -
नंगे तन में ढूंढ रहा है
कलुषित कर ले कपड़ों को
चित्कारो में विजय प्रमाद
संस्कृति रक्षा रखवारों को -
उदय वीर सिंह
1 टिप्पणी:
बहुत खूब
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