शनिवार, 22 दिसंबर 2018

उबला हुआ कड़ाही में बीज नहीं ज़मने वाला ---


तेरी कल्पना की झांकी में, मैं नहीं रमने वाला
बाती,तेल बिन दीपक कभी नहीं जलने वाला
अतल ह्रदय में जाग्रत वो दीप नहीं बुझने वाला
उबला हुआ कड़ाही में बीज नहीं ज़मने वाला-

अस्ताचल प्राची तिथियां सब पृथ्वी के फेरे हैं
चक्र गति सास्वत है जब तक तेरे मेरे डेरे हैं
अंशुमान को फांस फेंको वो नहीं ढलने वाला -
पत्थर जमा हुआ है सदियों से वो नहीं ज़मने वाला

जम जाता है नीर ,शरद ऋतू की पाकर संगति
दहक उठती हैं अग्नि शिराएँ खोकर शीतल संपति
उत्कोच्च लोभ डर शंसय समीर संग जो जमा नहीं
होते घाती सब निष्फल प्रयास वो कहाँ गलने वाला -

भावनाओं के उदरस्थल में भ्रम निषेचित हो सकता
स्नेहसिक्त आँचल में असत्य कदाचित पल सकता
पा जाता है ठौर कदाचित दर्शन अधोगति ले जाने वाला
निर्मम दिशाहीन बवंडर कब पाता सहोदर रोने वाला -
उदय वीर सिंह



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