रविवार, 24 फ़रवरी 2019

आंच तिनके की ढल गए -


क्या होना था तुमको क्या होकर के रह गए
पथ कर्त्तव्य के जाना था भावनाओं में बह गए
घावों को मर्यादा देते,वेदन सहते रहने की
धर्म आँखों का बता रहे आंसू बहते रहने की -
देकर दीक्षा लौह बनो,आंच तिनके की ढल गए -
सुख की पीर और दुःख की पीर का अंतर गढ़ते
मौन प्रलाप की कुंजी है कैसी हास परिभाषा कहते
ह्रदय मर्म को सुनना था परिहास बताकर निकल गए -
उदय वीर सिंह



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