झरती वतन की पीर लिखूं या
गमलों की बागवानी को ,
रानी केतकी के गीत लिखूं या
लिखूं झाँसी रानी को -
आँखों में सत्ता की चाहत
हर कदम मात और शह का है
सेवा को शमशान सुलाते
उद्देश्य लाभ निवेश का है -
जो गए लौट न आने को
उनकी लिखूं अमर कहानी को -
जो दूरबीनों से देख रहे
जाते वतन के रखवालों को
बैठे वातानुकूलित
महलों में
मुस्काते छद्म गद्दारों को -
देते सहानुभूति की मैली चादर
या लिखूं देसी चुनर धानी को -
उदय वीर सिंह
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