शनिवार, 30 मार्च 2019

शंकालु शमशीर कहे अब म्यान बदल लेते हैं


जिज्ञाषु की जिज्ञाषा कि ज्ञान बदल लेते हैं 
शंकालु शमशीर कहे अब म्यान बदल लेते हैं 
पाखंडी का दर्शन चोखा परिधान बदल लेते हैं 
लाश उठाये पीने वाले ,शमशान बदल लेते हैं -
अस्ताचल को जाते देख भगवान बदल लेते हैं 
संकट के घन छाये पंछी आसमान बदल लेते हैं 
परजीवी और उनके पैरोकार सदा आनंद में जीते
रिश्तों की बातें छोटी हिन्दुस्तान बदल लेते हैं
उदय वीर सिंह 
[ मित्रों सुधिजनों ! यह अभिव्यक्ति परोक्ष /अपरोक्ष किसी व्यक्ति,संस्था ,पंथ जाति ,धर्म से कोई सरोकार नहीं रखती ..इसे किसी से जोड़कर देखा जाय ]





शनिवार, 23 मार्च 2019

शहिदे आजम ! सरदार भगत सिंह जी


शहिदे आजम ! सरदार भगत सिंह जी के वलिदान दिवस पर भावभीनी 
विनम्र श्रद्धांजलि ..शत शत नमन ...
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मेरे जज़्बातों को मालूम है मेरे कलम की फितरत 
गर इश्क लिखना चाहूँ 
इंकलाव लिखा जाता है -
- शहीदेआजम सरदार भगत सिंह
तेरी शहादत ने सियासत नहीं मुकाम दिया है 
नस्लों को इन्कलाव खोया हिन्दुस्तान दिया है -
रखा दिल में वतन कदमों में गुलामी के तख्तो ताज 
तेरी सरफरोशी ने वतन को पहचान दिया है -
उदय वीर सिंह 
23-03-2019


गुरुवार, 21 मार्च 2019

लख वसन सुनहरे बाबूजी .....

राष्ट्रवाद का अर्थ विषद ,
तुमको कितना मालूम बाबूजी
यह वतनपरस्तों का आँगन है
तुमको कितना मालूम बाबूजी -
यह जाति गोत्र धर्म से ऊपर
दिल फरजन्दों का बाबूजी -
माजी दौर लिखा करता है
तुम मिटा पाओगे बाबूजी -
असाध्य रोग तन बचा पाए
लख वसन सुनहरे बाबूजी -
उदय वीर सिंह



बुधवार, 20 मार्च 2019

दिन हमारे बहुर गए ...


दिन हमारे बहुर गए ...........
आँखों से आंसू बहते हैं ,
दिन हमारे बहुर गए
दर्द हमारे कायम हैं
दिन हमारे बहुर गए
बृक्ष तेरे हैं फल मेरे
सत्ता समझौतों के सतर लिखा
गुठली मेरी उनके आम
दिन हमारे बहुर गए -
पिसती है आवाम सत्ता
सिंहासन की चक्की में
हुए हम भोग के सामान
दिन हमारे बहुर गए -
उदय वीर सिंह


रविवार, 17 मार्च 2019

मृग मरीचिका के सागर ...

अर्थों के घन चक्रव्यूह में विष बेल समझ आई
मृग मरीचिका के सागर ले नाव तैरने आई -
मरुधर के आँगन में शीतल छाँव संजोये बैठी है
मेघों की सास्वत जलधारों में वसन सुखाने आई -
संचित पीर ह्रदय कब वांछित पर्वत होती जाएगी
पाकर धार प्रवाह बनेगी गंतव्य मधुर पा जाएगी -
कल की गहन अंधेर निशा रश्मि शिखर को पाई
काँटों से बिंध कर बुलबुल फूलों में चहकने आई -
पहचाने जाओगे कर्मों से मत क्लेश गढ़ो परिधानों के
प्रीत के बादल पीर हरेंगें मत चेर बनो सर संधानों के -
नभ में दीवारें कहाँ बनीं रोकी कब तेरी परछाईं
कर पंख सृजित परवाज भरो नीचे होंगे पर्वत खाई-
दाखों का रस संरक्षित कर मदिरा बनाना चाहूँगा
विमम्र प्रतिकार मिलेगा तुमको मद तत्त्व बुझाने आई -
उदय वीर सिंह



तेरे नाम दा निवाला दो जहां दे रहा है -



जमीन दे रहा है आसमान दे रहा है
तेरे नाम दा निवाला दो जहान दे रहा है -
जर्रों को रोशनी है बेबसों के लब हंसी है
अंधेरों के घर मशाले नया विहान दे रहा है -
क्यों कर मंदा आखिए जिन जमिया राजान
नानक तेरा शुकराना सम्मान दे रहा है -
कुदरत के सब बन्दे कौन भले को मंदे
मानव की जाति एको नानक पैगाम रहा है -
किरत करना बंद के छकड़ा नानक की मर्यादा
आश लगाये गुरु चरणों की इलहाम दे रहा है -
उदय वीर सिंह

रविवार, 3 मार्च 2019

प्रारब्ध तुम्हें लिखना होगा -


निश्छल निर्भय नेह कर्म ,
प्रारब्ध तुम्हें लिखना होगा -
गंतव्य तुम्हारा है उस पार पथ शास्वत चलना होगा
पतझर बसंत संग शूल फूल वेदन मोद सहना होगा
पल का हर्ष विचलित कर देगा अनंत हर्ष गुनना होगा
जग व्यापित हो यश शौर्य शील जनमन की सुनना होगा -
जाज्वल्य तेरे नेत्रों की ज्योति
पथ दीप तुम्हें बनना होगा -
स्व विमर्श न्यून हो जाएँ सर्व विमर्श चुनना होगा
लांघ लोलुप लोभ की कारा राष्ट्र विमर्श करना होगा
राष्ट्र धर्म का मर्म हृहय हो दिक् राष्ट्र प्रेम बहना होगा
रहे अमर राष्ट्र संवेदन कर्म शिला-पट्ठ लिखना होगा -
मूक जायें भूप रूप अधिनायक अंधड़
तुम्हें अटल रहना होगा -
उदय वीर सिंह