दिन हमारे बहुर गए ...........
आँखों से आंसू बहते हैं ,
दिन हमारे बहुर गए
दर्द हमारे कायम हैं
दिन हमारे बहुर गए
बृक्ष तेरे हैं फल मेरे
सत्ता समझौतों के सतर लिखा
गुठली मेरी उनके आम
दिन हमारे बहुर गए -
पिसती है आवाम सत्ता
सिंहासन की चक्की में
हुए हम भोग के सामान
दिन हमारे बहुर गए -
उदय वीर सिंह
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