रविवार, 28 अप्रैल 2019

अपना बयान लिखने को....

उनके हाथों में कलम दे दो
अपना बयान लिखने को
उनको मालूम है अपना नाम
वो जानते हैं अपना नाम लिखने को-
भारत माँ वन्दे मातरम दस्तावेज हैं ह्रदय के
हिन्दुस्तान खून में है
तुम कपड़ों पर कहते हो ,
हिन्दुस्तान लिखने को -
फरेब से फुरसत मिली तो माँ याद आये
ये हो नहीं सकता ,गद्दारों को कहो जो
महान लिखने को
उदय वीर सिंह

शनिवार, 27 अप्रैल 2019

कहा नहीं जा सकता ....

हर सीने में दिल होता हर सीने में धड़कन भी -
पर कहा नहीं जा सकता
हर सीने में मधु होगा हर सीने में मधुवन भी -
***
हर दिल चाहत होती हर दिल में उत्साह प्रवर
पर कहा नहीं जा सकता
हर हाथों में दीपक होगा हर हाथों में परचम भी -
***
विषधर की रखवाली में चन्दन अछूत हो जाता है
पर कहा नहीं जा सकता
शोलों की आगोश बसा शीतल रह पायेगा चन्दन भी -
***
जब रण मांगे आभूषण शाळा शस्त्र बनाने लगती है
कहा नहीं जा सकता
कब मांग बन जाए रणचंडी,शमशीर बने कर कंगन भी -

उदय वीर सिंह




लिख सकें तो .... सम्मान लिखा जाये


लिख सकें तो वीरों का सम्मान लिखा जाये
धर्म जाति आस्था से पहले वलिदान लिखा जाये ,
राम -रहमान के मसले अपने घर में रखें ,
लिखना है तो पहले हिन्दुस्तान लिखा जाये -
अब गमलों में देशी फूल नहीं लगते वीर 
अंगरेजी घास से पहले खेत खलिहान लिखा जाए -
राष्ट्रवाद के छद्म आवरण में घृणा क्यों बोयें 
लिखा जाये तो मानस में संविधान लिखा जाये -
उदय वीर सिंह


रविवार, 21 अप्रैल 2019

रोटी व चन्दन रोली की ....

भाषा व दरबारी हों तो,तिल ताड़ हुए जाते हैं ,
प्रलाप भरी जिह्वा से राई ,पहाड़ हुए जाते हैं .
पीड़ा तो आखिर पीड़ा है रानी की या पटरानी की 
झुकने वाले अरि सम्मुख सरदार हुए जाते हैं -
लांछित हई मानवता जिनके कृत्यों से वो शूर
जो कटे देश हित टुकड़ों में वो गद्दार हुए जाते हैं -
रोटी और चन्दन रोली की भूख समझनी होगी
पाखंडों की बीन बजाना सभ्याचार हुए जाते हैं -
उदय वीर सिंह

हवा भी ठहर जाती ...

हवा भी ठहर जाती, जो कहीं उसका घर होता
संवेदना बस जाती उसका जो कहीं शहर होता
जीवन प्रीत का समंदर होता डूब कर भी मोक्ष
आनंद होता मानस में न काशी न मगहर होता -
नीरवता ने शोर को जन्म दिया नाद कहता है
आशा ने ही निराशा को जना विषाद कहता है
कल्पना ठहर जाती किसीअभिव्यक्ति की प्राचीर
वक्त कहता है ,न महल होते, न खँडहर होता -
उदय वीर सिंह

कायरता शहीदी और शमशीर नहीं देती -


सियासत सिक्खी को तकदीर नहीं देती
कायरता शहीदी और शमशीर नहीं देती -
सिक्खी परमात्मा की रजा गुरुओं की सौगात है
सिक्खी सबको प्यार देती है पीर नहीं देती -
आँधियों तूफानों ,बुजदिलों ने बुरा बहुत चाहा
सिक्खी चानण है,ये धरती है कि दूजा नजीर नहीं देती -
कोहिनूर कोयले में भी चमक नहीं खोता
सिक्खी आजादी देती है जंजीर नहीं देती -
उदय वीर सिंह
जब बच्चे पूछने लगें ,बैसाखी क्या है ?
जब बच्चे पूछने लगें आजादी क्या है ? 
हमारा फर्ज है उन्हें बताएं .
जब एक सिक्ख पूछने लगे सिक्खी क्या है
ज़माने में इससे बड़ी बर्बादी क्या है -
पंथ साडा सरमाया है हम उसके सेवादार
पंथ की नाफ़रमानी से बड़ी दगाबाजी क्या है -
उदय वीर सिंह








बुधवार, 17 अप्रैल 2019

मुद्दों के दरवाजे बंद ....


वादों के रंग महल में बजती,वादों की शहनाई है,
दरिया शाहिल वादों के वादों की नाव चलाई है -
आदर्शों के कद इतने ऊँचे हैं,छोटा लगे हिमालय
मुद्दों के दरवाजे सारे बंद ,हैं खुले हुए मदिरालय -
जो तोड़ सके भेदों को ,वो तारे तोड़कर लायेंगे
मुट्ठी में अपनी सूरज रखते, थाली में चाँद दिखायेंगे -
राष्ट्र प्रेम की हल्दी घाटी, प्रताप सी सूरत गायब है
वतनपरस्ती ना-जायज , सत्ता सिंहासन जायज है -
उदय वीर सिंह






शनिवार, 13 अप्रैल 2019

खालसा तेरो रूप है खास ....

खालसा पंथ साजना की हृदय से बधाई व 
दुनियां का क्रूरतम कुकृत्य जालियां वाला नरसंहार के अमर वलिदानियों को विनम्र अश्रुपूरित श्रद्धांजलि .. 
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जागो मशालों अब,सहर होनी चाहिए
अपनी विरासत की खबर होनी चाहिए -
गुरु घर के सिहों सी शहादत न दुनियां में
वतन के शहीदों की कदर होनी चाहिए -
सिक्खी ने बख्सा है वतन की सलामत को
हमें अपने माजी की खबर होनी चाहिए -
मिरी और पीरी मन्त्र गुरुओं की थाती है
पिता दशमेश वरगी नजर होनी चाहिए -
मुर्दा रगों में कभी खून नहीं बहता है
बाबा दीप सिंह सी फतह होनी चाहिए -
उदय वीर सिंह

रविवार, 7 अप्रैल 2019

प्यास

 प्यास पहले आई या पानी ,ये तो मुझे ज्ञात नहीं पर जीवन के हर विमर्शों से पहले मुझे पानी की तलाश है तलाश भी इसलिए की मुझे अपना गंतव्य पाने की लालसा अशेष पुर्णतः जाग्रत असीमित है
माँ कहती थी प्यास है तो गतिशीलता है ,प्यास बनी रही तो रब ही नहीं सब प्राप्य हैं प्यास का होना जीवन का होना है।
  अब माँ तो रहीं ,पर उनकी कही प्यास के संदर्भ को मैंने सदा शुभेक्षा सृजन के सत्यार्थों में देख चलता गया ..अपना गंतव्य पाने की लालसा मेरी प्यास ने जीवित रखा है मेरे साथ चलते अन्य पांवों पथों की भी उपस्थिति रही है ,परन्तु उनकी प्यास का संवाद मेरी प्यास के गंतव्य से कुछ अलग रहा कुछ की शायद प्यास रही कुछ की तलाश रही .. बिछोड़ा हो गया शायद किसी को गंतव्य मिल गया ,किसी के प्यास का पथ बखरा हो गया ...
  संवेदना की पौडियों से कभी पीछे देखता हूँ , पुरुषार्थी राजा भागीरथ स्मृति में आते हैं ... उनकी प्यास याद आती है .ऋषि अगस्त की प्यास भी जिवंत हो रोमांचित कर देती है।पूर्व ईशा व उत्तर-ईशा के राजाओं व प्रजा की प्यास भी रेखांकित हो उठती है ।
  जब माँ थीं तो मैंने उनसे यह प्रश्न नहीं कर सका था की ' प्यास का स्वाद रंग ,उसका रूप उसकी मीमांसा उसका स्थान ,क्षेत्र अलग अलग क्यों होता है ? शायद मेरी मनः स्थति में इनका विस्तार रहा हो ...या माँ-पुत्र के संवाद का शिष्य मुख का आचरण
परन्तु आज ये प्रश्न उद्वेलित करते हैं ...
  हूणों सकों,आर्यों-अनार्यों कालांतर में बाह्य आक्रान्ताओं यथा सिकंदर ,गोरी गजनी,गुलाम चंगेज,तैमुर अब्दाली फिर मुग़ल ,डच,फ्रांसीसियों अंग्रेजों की प्यास का रंग खूनी ,असहिष्णु विकृत रूप लिए प्रक्षेत्र ,हमारा प्रायद्वीप ही रहा ।
  आज उनकी अनुपस्थिति के बाद की प्यास का रंग रूप स्थान क्षेत्र ,प्यासी सरिता के उन्मादी कटानों के बाद भी अपरिवर्तित देखे जाते हैं हथियारों का आकार प्रकार ,संसाधन,व् तकनीक भर बदले हैं ,लेकिन षडयंत्रों की सीमा , विषदंतता,निर्ममता,भेद,अपारदर्शिता का पत्थर स्वरुप,आज भी अपरिवर्तित है अनवरत कार्यरत हैं गतिशील हैं शायद अपनी प्यास लिए अपने गंतव्य पथ पर हैं
  माँ कहती थीं प्यास है तो रब ही नहीं सब मिल जाते हैं .....आज भी प्यास है गंतव्य की तलाश कमतर नहीं उत्तरोत्तर है परन्तु दरिया है कि उसकी अपनी प्यास है सागर है कि उसकी अपनी प्यास है जीवन है की उसकी अपनी प्यास है ,पानी तो है कि वह एक रंग ही रहा ..हम अपनी प्यास के जिज्ञाशु रंगीले हो गए
   माँ स्मृतियों में हैं .. मेरे प्रश्न अनुत्तरित मेरे पास रह गए हैं ,जिन्हें मैं अब पूछना चाहूँ भी तो नहीं पूछ सकता ।
उदय वीर सिंह
7/4/19