मैने चाहा बहुत फासला न रहे
फासला इतना था ,फासला रह गया
सफर छोड़ कर हमसफ़र टूर गए
फासलों में मेरे काफिला रह गया -
न मयस्सर हुईं इल्म की पौडियां
दाखिला नाम का दाखिला रह गया -
कस्र टीले में तब्दील पाता हूँ मैं
किला नाम का अब किला रह गया -
सदाओं में सोयी सदाकत मिली
हंजुओं का निरा सिलसिला रह गया -
मेरी कोशिश मिटाने की भरसक रही
फिर भी पाया दिलों में
गिला रह गया -
उदय वीर सिंह
3 टिप्पणियां:
वाह!!बहुत खूब!!
बहुत सुन्दर
वाह!!!
बहुत सुन्दर
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