रविवार, 7 अप्रैल 2019

प्यास

 प्यास पहले आई या पानी ,ये तो मुझे ज्ञात नहीं पर जीवन के हर विमर्शों से पहले मुझे पानी की तलाश है तलाश भी इसलिए की मुझे अपना गंतव्य पाने की लालसा अशेष पुर्णतः जाग्रत असीमित है
माँ कहती थी प्यास है तो गतिशीलता है ,प्यास बनी रही तो रब ही नहीं सब प्राप्य हैं प्यास का होना जीवन का होना है।
  अब माँ तो रहीं ,पर उनकी कही प्यास के संदर्भ को मैंने सदा शुभेक्षा सृजन के सत्यार्थों में देख चलता गया ..अपना गंतव्य पाने की लालसा मेरी प्यास ने जीवित रखा है मेरे साथ चलते अन्य पांवों पथों की भी उपस्थिति रही है ,परन्तु उनकी प्यास का संवाद मेरी प्यास के गंतव्य से कुछ अलग रहा कुछ की शायद प्यास रही कुछ की तलाश रही .. बिछोड़ा हो गया शायद किसी को गंतव्य मिल गया ,किसी के प्यास का पथ बखरा हो गया ...
  संवेदना की पौडियों से कभी पीछे देखता हूँ , पुरुषार्थी राजा भागीरथ स्मृति में आते हैं ... उनकी प्यास याद आती है .ऋषि अगस्त की प्यास भी जिवंत हो रोमांचित कर देती है।पूर्व ईशा व उत्तर-ईशा के राजाओं व प्रजा की प्यास भी रेखांकित हो उठती है ।
  जब माँ थीं तो मैंने उनसे यह प्रश्न नहीं कर सका था की ' प्यास का स्वाद रंग ,उसका रूप उसकी मीमांसा उसका स्थान ,क्षेत्र अलग अलग क्यों होता है ? शायद मेरी मनः स्थति में इनका विस्तार रहा हो ...या माँ-पुत्र के संवाद का शिष्य मुख का आचरण
परन्तु आज ये प्रश्न उद्वेलित करते हैं ...
  हूणों सकों,आर्यों-अनार्यों कालांतर में बाह्य आक्रान्ताओं यथा सिकंदर ,गोरी गजनी,गुलाम चंगेज,तैमुर अब्दाली फिर मुग़ल ,डच,फ्रांसीसियों अंग्रेजों की प्यास का रंग खूनी ,असहिष्णु विकृत रूप लिए प्रक्षेत्र ,हमारा प्रायद्वीप ही रहा ।
  आज उनकी अनुपस्थिति के बाद की प्यास का रंग रूप स्थान क्षेत्र ,प्यासी सरिता के उन्मादी कटानों के बाद भी अपरिवर्तित देखे जाते हैं हथियारों का आकार प्रकार ,संसाधन,व् तकनीक भर बदले हैं ,लेकिन षडयंत्रों की सीमा , विषदंतता,निर्ममता,भेद,अपारदर्शिता का पत्थर स्वरुप,आज भी अपरिवर्तित है अनवरत कार्यरत हैं गतिशील हैं शायद अपनी प्यास लिए अपने गंतव्य पथ पर हैं
  माँ कहती थीं प्यास है तो रब ही नहीं सब मिल जाते हैं .....आज भी प्यास है गंतव्य की तलाश कमतर नहीं उत्तरोत्तर है परन्तु दरिया है कि उसकी अपनी प्यास है सागर है कि उसकी अपनी प्यास है जीवन है की उसकी अपनी प्यास है ,पानी तो है कि वह एक रंग ही रहा ..हम अपनी प्यास के जिज्ञाशु रंगीले हो गए
   माँ स्मृतियों में हैं .. मेरे प्रश्न अनुत्तरित मेरे पास रह गए हैं ,जिन्हें मैं अब पूछना चाहूँ भी तो नहीं पूछ सकता ।
उदय वीर सिंह
7/4/19







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