रविवार, 5 मई 2019

दूर से जरा मुस्कराईये .प्लीज


आखिर हम किसके घर जाएँ
अनियंत्रित आग पानी
कहीं तूफ़ान
दर किसका खटखटाएं !
कायनातों में
उनके छेद ....
बंद महल उनके
अभेद्य !
हवा विषैली दलदली जमीन
कागजी फूल
गमलों में गुंथे बरगद
हाथों में बन्दुक
झोले में बारूद
सिंहद्वार पर हिंसक जीव 
पिंजरों में कैद
बेड़ियों में जकडे
मृत मानव कंकाल
उलटी टंगी गौरैया,बुलबुल
हांफती कोयल
खुले रेंगते अजगर
भेडिये मांजते दन्त
विभत्सता की पराकाष्ठा
किसे सुनाएँ
किधर जाएँ ...
संवेदना अट्टहास करती कहती
मत आईये करीब
दूर से जरा मुस्कराईये .!
फोटोग्राफ प्लीज ......
उदय वीर सिंह





2 टिप्‍पणियां:

Meena sharma ने कहा…

बहुत सुंदर रचना। सादर आभार साझा करने हेतु।

'एकलव्य' ने कहा…

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