किसी धर्म -पंथ से दूर बहुत,राष्ट्र-राग गानी होती है,
अमरत्व मोक्ष से दूर बहुत,राष्ट्र की अलख जगानी होती है-
जब जब धर्म की स्याही से राष्ट्र-प्रलेख लिखे जाते,
दीन- दासता की सदियों तक पीर चुकानी होती है -
छल षडयंत्र पक्षपात मोह से वैर सदा रखना होता,
समतल पथ सम की रचना मद की कंध गिरानी होती है -
उदय वीर सिंह
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