सोमवार, 24 जून 2019

समदर्श समीक्षा एकल हो ..

जब समदर्श समीक्षा एकल हो सत्य रसातल जाता है,
षडयंत्र प्रायोजित भीड़ हुई सुकरात हलाहल पाता है-
समग्र सृजन का भाव तिरोहित बसुधा बंजर हो जाती है
सूखे कंकालों के बीच एक दिन भूखा गिद्ध मर जाता है-
जब न होंगे बस्ती बंजारे किसको बेचोगे सौदागर
खाली बस्ती खामोश शहर से जादूगर भी टूर जाता है-
मत रौंदो मानवता को,मानवता की अस्थि प्रखर होगी
जा लगी आंत में किंचित भी बब्बर शेर मर जाता है -
उदय वीर सिंह

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