मंगलवार, 30 जुलाई 2019

तेरी प्रीत निराली जी .....


तेरी प्रीत निराली जी ! तेरी रीत निराली जी ,
ना लौटा तेरे दर से कोई,खाली हाथ सवाली जी-
निज आँचल से आंसू पोंछे,जब कोई बेबस आया ,
बदहाली अपनी छोड़ गया,पाकर के खुशहाली जी -
तेरी दात ने भर दी झोली,साधू ,संत फकीरों की ,
संगत पंगत के आगे फीकी राजन की कंचन थाली जी -
प्रीत के व्यंजन ,प्रीत की थाली,प्रीत रंग-रस पाये ,
प्रीत की दुनियां रोज मनाती होली ईद दिवाली जी -
जिसके सिर ऊपर तुम स्वामी सो दुःख कैसा पावे,
उसका अनभल कैसे संभव जिसकी तू करता रखवाली जी-
उदय वीर सिंह 



रविवार, 28 जुलाई 2019

गुरुओं के विरुद्ध जो साक्ष्य बने

गुरुओं के विरुद्ध जो साक्ष्य बने
अंग्रेजों के हितकारक जन
मुगलों के समधी संरक्षक सलाहकार
थे सत्ता के परिचारक जन -
सामंती गिरोह के ठग वंचक
स्वर प्रखर हो जाता है -
खून पसीना आंसू मलबा लगते
उनका दाग शिखर हो जाता है -
मानवता का मर्दन करते अशिष्ट
स्वर,कर नस्तर हो जाता है
पीड़ा को देते संवेदन विष का
उर प्रस्तर हो जाता है - 
वलिदानी वीर खलनायक लगते
राजमहल के नक्कारों को ,
जिनसे शोषित पीड़ित मानवता है
कैसे प्रसून कहें हम खारों को-

 उदय वीर सिंह 

शनिवार, 27 जुलाई 2019

कंगन भी कटार हो जाता है जी ..

नीर भी अंगार हो जाता है जी 
रिश्तों का व्यापार हो जाता है जी- 
जब चूड़ियों का मोल लगने लगे
कंगन भी कटार हो जाता है जी - 
बिकी हुई जुबान की महफ़िल में 

गूंगा भी असरदार हो जाता है जी -
दृष्टि पहचान की जब खो जाये, 
चन्दन खर-पतावार हो जाता है जी -
जव मुंह चुराने लगे वफ़ादारी, 
मंगल भी इतवार हो जाता है जी -
जब प्यास खून से बुझने लगे ,
सूना-सूना संसार हो जाता है जी -
उदय वीर सिंह
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शनिवार, 13 जुलाई 2019

पीर उधारी दे रहे हो ....

हमने माँगा रोटी तो तरकारी दे रहे हो
सुख के साधन मांगे पीर उधारी दे रहे हो-
हाथ हमारे मांग रहे हैं औजारों के आँगन
दृष्टि पड़े हथियारों की,लाचारी दे रहे हो-
बंद हुए आशाओं के पथ सूरज डूब रहा है,
आंसू संग बह जाते स्वप्न सरकारी दे रहे हो-
पढ़ कर पुस्तक ख़त्म हुई अंत न पाई बेकारी,
बिलख रहा है कंगन,हाथ कटारी दे रहे हो-
केशर चन्दन नीम हरड़ लुप्त हुये जाते हैं ,
उर्वर खेतों में काँटों की क्यारी दे रहे हो-
उदय वीर सिंह

नजर कमजोर क्यों है ...

हाथ जितने लम्बे हुए नजर कमजोर क्यों है 
सितारे तोड़ने को कह रहे पैरों में डोर क्यों है -
बस्तियां तो इल्मवालों की थीं जंगली हो गयीं 
बुत सी दिखने वाली शक्ल आदमखोर क्यों है -
जज्बात मेरे हैं ,चुभते हैं तो बेशक गिला करो 

पर मेरी कलम और रोशनाई पर शोर क्यों है -
उदय वीर सिंह

कैसे तेरे हिस्से में ....

कैसे तेरे हिस्से में धरती आसमान आ गया ,
मैंने तो अपना हक़ माँगा,जैसे लगा कि तूफ़ान आ गया -
बहसीपन के धर्म और जाति होने लगे, 
इंसानियत की राह हिन्दू ,मुसलमान आ गया - 
गायब हो गए रास्ते के प्याऊ घोंसले मकान 

लहलहाते बागों की जगह रेगिस्तान आ गया -
उदय वीर सिंह


शुक्रवार, 12 जुलाई 2019

कितने झूठ उगाओगे ...


कितने झूठ उगाओगे एक सत्य छुपाने की खातिर -
कितने झोपड़ जारोगे एक महल बनाने की खातिर -
खुले नैन के सपनों को तम,प्रकाश से क्या लेना
कितने शीश उतारोगे झूठा मान बचाने की खातिर -
जन मानस कब चाहा है ,काँटों का संसार मिले
जीवन भष्मित क्यों,बुत महान बनाने की खातिर-
उदय वीर सिंह



गुरुवार, 11 जुलाई 2019

रुसी -भारतीय [संस्मरण ]


रुसी -भारतीय 
बेबी .... लोवा- [एक निर्मल दर्शन ]
रुसी साहित्यिक यात्रा के दौरान देश रूस के सेण्ट पीटर्स बर्ग में,शाम के समय एक मनोहारी बाग़ में खुबसूरत मौसम,वातावरण व अनुपम नैशर्गिग कृति का ,हम लोग कभी विचरण कभी बैठ कर आनंद ले रहे थे । ईश्वर और रुसीयों ने मिलकर कितना सुन्दर अप्रतिम रूस को बनाया है । 
वहां आये रुसी व अन्य नागरिकों के बीच संयोग से अपनी सौम्य पहचान INDIAN [भारतीय ] की एक प्राथमिक शिक्षक दम्पति द्वारा बिना लग लपेट के प्राप्त कर मन बहुत प्रफुल्लित हुआ । जबकि एक ओर पहचान का घोर संकट है विश्वसनीयता संदेह की ओर है ।
महत्त्व पूर्ण ये रहा की उनकी लगभग पांच वर्षीया परी सरीखी पुत्री [नाम अस्पष्ट ..बेबी लोवा ] ने जाने अनजाने बाल सुलभ आचरण से दो संस्कृतियों [ भारतीय व रुसी ] को आत्मीय बनाया । बेबी लोवा ने मुझे देख अपने दोनों हाथ जोड़ पहले नमस्ते कह कर अभिवादन किया ,व कहीं से एक पुष्प चुन कर मुझे भेंट किया । मैंने अपने हाथ जोड़ उसे नमस्ते कहा । वह बहुत खुश थी ।
उसने अपने माँ -पिता की ओर इशारा किया जो पास ही खड़े सौम्य भाव से मेरी तरफ देख दोनों हाथ जोड़ अभिवादन कर रहे थे । चेहरे पर ख़ुशी व मुस्कराहट थी । मैं उनक तरफ बढ़ा वे भी मेरे पास चलते हुए आ गए । मेरे साथ उदयपुर से मेरे सहयोगी डॉ मनोहर लाल श्रीमाली जी भी थे ।
प्राथमिक शिक्षक दम्पति से बहुत तो नहीं पर अंग्रेजी में ही यथासंभव संवाद हो सका क्यों की मुझे रुसी नहीं आती ,वे थोड़ी बहुत अंग्रेजी जानते थे ।
बातों -बातों में पता चला की वे लोग भारत व भारतीयों को बहुत प्यार करते हैं । भारतीय संस्कृति,वेश -भूषा,संगीत व फिल्मों को आकर्षक व समृद्ध मानते हैं ।
यह एक महत्वपूर्ण बात मुझे लगी कि -' हम लोग पगड़ी देख कर पहचान लेते हैं की अमुक व्यक्ति भारतीय होगा ,जबकि पगड़ी इंग्लैण्ड अमेरिका कनाडा सहित विश्व के अधिकतम देशों में सिखों द्वारा धारण की जाती है । और वे स्थायी रूप से उन देशों के निवासी भी हैं पर उनका कहना था की पगड़ी देख कर भारतीयता का अहसास होता है। मानस में इन्डियन का ही भाव आता है ।
मैंने उन्हें हिंदी गीत - मेरा जूता है जापानी मेरी ... वे खिलखिलाए और अपनी उन्मुक्त हंसी को नहीं रोक पा रहे थे... । इस गीत से वे पूर्व परिचित लगे ।
बिटिया लोवा की ख़ुशी अपार थी उसने मेरे साथ कई फोटो कराये कभी फूल के साथ ,कभी मेरे समीप आकर ... मेरे अपने बच्चों की याद बरबस छलक आई थी ...।
बेबी लोवा ने कई प्रश्न अनुत्तरित रह गए जिन्हें मैं नहीं समझ सका ..पर उसके माँ पिता की भाव भंगिमा से लगा की वो मासूम प्रश्न थे ....सिर्फ मैं मुस्करा कर ही अपनी ख़ुशी जाहिर कर सका । एक प्रश्न को
उसकी माँ ने अंग्रेजी में बताया ...
क्या आप की कोई बेटी है ?
मैं खिलखिला कर कहा -
हां ! ठीक तुम्हारे जैसी ..परी लोवा जैसी ....।
दोनों हाथ ऊपर कर वो उच्च स्वर में कुछ बोल रही थी ,,जिसे मैं नहीं समझ सका था ,पर मुझे वो पल बहुत मधुर व सगे लगे ...।
सबके चेहरों पर प्राकृतिक व आत्मीय हंसी थी ।
मैंने चलते समय उनको दस्वीदानियाँ कह कर विदा लिया ।
उधर से नमस्ते ...! नमस्ते !.. के मधुर शब्द गूंजे थे ..।
दस्वीदानियाँ और नमस्ते ' शब्द हम दोनों संस्कृतियों के लिए खास और आत्मीय हो चले थे ।
उदय वीर सिंह