शनिवार, 13 जुलाई 2019

पीर उधारी दे रहे हो ....

हमने माँगा रोटी तो तरकारी दे रहे हो
सुख के साधन मांगे पीर उधारी दे रहे हो-
हाथ हमारे मांग रहे हैं औजारों के आँगन
दृष्टि पड़े हथियारों की,लाचारी दे रहे हो-
बंद हुए आशाओं के पथ सूरज डूब रहा है,
आंसू संग बह जाते स्वप्न सरकारी दे रहे हो-
पढ़ कर पुस्तक ख़त्म हुई अंत न पाई बेकारी,
बिलख रहा है कंगन,हाथ कटारी दे रहे हो-
केशर चन्दन नीम हरड़ लुप्त हुये जाते हैं ,
उर्वर खेतों में काँटों की क्यारी दे रहे हो-
उदय वीर सिंह

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