मंगलवार, 29 अक्तूबर 2019

न जाने कितने संसार हैं ......


माना कि तेरे सूरज हजार हैं ,
हम भी रोशनी के तलबगार हैं -
उनकी जमीन देश दिशा कौन ,
कौन उनके भूप,कौन सरकार हैं ?
कैसी हैं फसलें,बिरवे माली कौन,
नीर,नदिया कौन कैसे किनार हैं ?
सूरज रोशनी का किधर रह गया
हमारे घर गाँव कितने अन्हार हैं-
ढूंढने की कोशिशों में डूब जाता है दिन
ढूंढता हूँ रोज जाने कितने संसार हैं -
उदय वीर सिंह


शनिवार, 26 अक्तूबर 2019

मन के दीप .....


मन के दीप जलेंगे,जीवन यश-गान लिखेगा
एक ज्ञान-दीप करुणा का लख प्रतिदान लिखेगा -
प्रतिभागी बन जाता है,संवेदन का संसार सबल ,
धवल रश्मियाँ उज्वल पथ,सद सम्मान लिखेगा -
मन के दीप जलेंगे . तमस ,मनस का हारेगा
चक्षु अंतस के जाग्रत होंगे जाग्रत होंगे तंतु तंतु
बांचेंगे दीप निष्पक्ष मर्म,नेह ऊँचा प्रतिमान लिखेगा -
उदय वीर सिंह

रविवार, 13 अक्तूबर 2019

निहितार्थ की भूमिका


संवेदना के स्नेहिल शब्द .....
निहितार्थ [काव्य संग्रह ] मेरी नवल साहित्यिक कृति का आकार पाकर जन मानस से संवाद करने के उपक्रम का ,सार्थक पल मुझे भी रोमांचित व भाव- विभोर कर रहा है ।
अभिव्यक्तियों ,संवेदनाओं का तारतम्य अहर्निश स्थापित रहे अविराम चलता रहे ,मनुष्यता को सम्मानित प्रतिष्ठित करेगा मेरा ऐसा विचार है समस्त जीवन ही नहीं प्रकृति के साथ भी सृजन की मूल भावना ही वांछित हो स्वीकार्य भी ,यही यथार्थ व सार तत्व भी होगा हमारी सामाजिक साहित्यिक सरोकारी भवनिश्ठता का ।
निहितार्थ एकल नहीं सामूहिक सद्दभाव का विमर्श करे ,चैतन्यता और सुन्यता के बीच के स्थान को इंगित कर समतल क्षितिज का निर्माण हो स्वर ,शब्द सहायक हो ,मेरी शुभकामना है
' निहितार्थ ' काव्य -संग्रह जन-मानस को समर्पित करते हुए अपने को मानवीय ऋणों से उऋण होने का एक प्रयास भर मानता हूँ इसमें कितना सफल हुआ हूँ इसके न्यायाधिकारी आप हैं ,निर्णय आप पर छोड़ता हूँ
मैं श्री गुरुग्रंथ साहिब जी महाराज, गुरु शिक्षकों ,परिजनों, सुधि पाठकों ,शुभचिंतकों देश -विदेश के आत्मीय मित्रों का हृदयसे आभार कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ जिन्होंने मुझे प्रति-क्षण उर्जमयी प्रेरणा सहयोग संबल दिया
' निहितार्थ ' प्रतिष्ठित हो आपसे , आपकी प्रतिष्ठा में निहितार्थ है ,आपकी आलोचना,समालोचना,सुझाव समीक्षा का आधिकार आपको देता हूँ
भवदीय
उदय वीर सिंह
गोरखपुर [ .प्र .]




शनिवार, 12 अक्तूबर 2019

पत्थर का बना दो ....


पत्थर का बना दो........
एक नयी दुनियां के लिए
उन्हें पत्थर का बना दो
जिनके ह्रदय में संवेदना है -
छीन लो उनकी हवा ,पानी अग्नि
या बदल दो उनके पथ
उस दिशा में
जिसे प्रकृति ने अभी नहीं बनाया .....
शायद उनका तुम
निर्माण करोगे......
उन्हें पत्थर का बना दो
वो अवांछित लगते हैं
जिनके मन -मानस में वेदना है ...
अमानवीयता का प्रतिकार है
अप्रभावित रहेंगे धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष से,
किसी अधिकार द्वेष वैर विरोध भय शंकाओं से मुक्त ..
उन्हें पत्थर का बना दो
जिनमें नवीनता अन्वेषण की जिजीविषा है
सम्मान है मनुष्यता जीवन के प्रति
पूर्ण विराम लगा दो ..
उन आश भरी आँखों पर
जो अंधरे से उजास की
खोज में हैं ---
उन्हें पत्थर का बना दो .....
उन्हें पत्थर बना दो ...
उदय वीर सिंह






रविवार, 6 अक्तूबर 2019

हमदर्द जो है ....

हमदर्द जो है ....
जंगल न देंगे धरना, बृक्ष न देंगे वोट
माब लिंचिंग से दूर बहुत पुरानी खोट -
रागहीन न रार करेंगे ,न चंदे की बात
न ढोते झंडे-डंडे ,पाते आरी की घात -
न आती हड़ताल, ना सत्याग्रह निति
पत्थर की प्राचीर नहीं,काची उनकी भीत -
दायर करें ना वाद ,न मुंसिफ से पहचान
अपराध न अपना पूछते निर्मम देते जान -
जंगल करें न चाकरी,कोई बृक्ष करें ना काम
आयात वायु की कर लेंगे कौन बड़ा सा काम
संसद हो या संविधान किसकी उनसे प्रीत
नेता हो या अभिनेता कौन करे परतीत-
आरे रेगिस्तान है ,कहता मानव संतान ,
आँख कान विवेक से सूना हो गया इंसान -
उदय वीर सिंह

देखते रहे......


देखते रहे
कागजी नाव डूबती रही
भंवर की ओर
बढती रही...
तुम असमर्थ थे या
तुम्हारा सगल ...
डगमगाती नाव का भवजल
निहितार्थ कुतूहल ....
कसमसाती अदम्य बोझ से ...
भर दिया था
आकांक्षाएं,वादों व्यतिरेकों
आवेदनों,सास्तियों,संहिताओं से
किनारे दूर मजबूर
खड़े उर्ध्व ....
डूबना ही था
कागज की थी
कागजी थी .........
हवाओं का मौजों को
समर्थन भी अनुकूल था ......

उदय वीर सिंह





बुधवार, 2 अक्तूबर 2019

पदचिन्ह जहाँ तक जाते हैं,


पदचिन्ह जहाँ तक जाते हैं,
उनका शत-शत शुकराना है,
अग्रे पथ निर्माण करो यदि
गुह्य गंतव्य को पाना है-
पाखंडी मिथ पाखंड छोड़
हर आडम्बर को झुठलाना है
होता वलिदानी के हाथ शीश
यह वीरों का खेल पुराना है -
कभी रणभूमि में जाकर वीर
रुत वार नहीं देखा करते ,
तज दिशा देश काल मुहूर्त
होना विजयी या मिट जाना है -
उदय वीर सिंह