रविवार, 13 अक्तूबर 2019

निहितार्थ की भूमिका


संवेदना के स्नेहिल शब्द .....
निहितार्थ [काव्य संग्रह ] मेरी नवल साहित्यिक कृति का आकार पाकर जन मानस से संवाद करने के उपक्रम का ,सार्थक पल मुझे भी रोमांचित व भाव- विभोर कर रहा है ।
अभिव्यक्तियों ,संवेदनाओं का तारतम्य अहर्निश स्थापित रहे अविराम चलता रहे ,मनुष्यता को सम्मानित प्रतिष्ठित करेगा मेरा ऐसा विचार है समस्त जीवन ही नहीं प्रकृति के साथ भी सृजन की मूल भावना ही वांछित हो स्वीकार्य भी ,यही यथार्थ व सार तत्व भी होगा हमारी सामाजिक साहित्यिक सरोकारी भवनिश्ठता का ।
निहितार्थ एकल नहीं सामूहिक सद्दभाव का विमर्श करे ,चैतन्यता और सुन्यता के बीच के स्थान को इंगित कर समतल क्षितिज का निर्माण हो स्वर ,शब्द सहायक हो ,मेरी शुभकामना है
' निहितार्थ ' काव्य -संग्रह जन-मानस को समर्पित करते हुए अपने को मानवीय ऋणों से उऋण होने का एक प्रयास भर मानता हूँ इसमें कितना सफल हुआ हूँ इसके न्यायाधिकारी आप हैं ,निर्णय आप पर छोड़ता हूँ
मैं श्री गुरुग्रंथ साहिब जी महाराज, गुरु शिक्षकों ,परिजनों, सुधि पाठकों ,शुभचिंतकों देश -विदेश के आत्मीय मित्रों का हृदयसे आभार कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ जिन्होंने मुझे प्रति-क्षण उर्जमयी प्रेरणा सहयोग संबल दिया
' निहितार्थ ' प्रतिष्ठित हो आपसे , आपकी प्रतिष्ठा में निहितार्थ है ,आपकी आलोचना,समालोचना,सुझाव समीक्षा का आधिकार आपको देता हूँ
भवदीय
उदय वीर सिंह
गोरखपुर [ .प्र .]




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