शनिवार, 30 नवंबर 2019

असत्य आवेदन नारी से ...


मंदिर में एक बेटी देवी है
बाहर सामान पुकारी जाती है
सत्ता स्वार्थ के उत्सव में
विष-कन्या सी उतारी जाती है -
जब मंदिर मस्जिद संसद से
सदा सहानुभूति की आती है ,
नर पिशाच की दुर्बल आकृति
गिरिवर सी होती जाती है -
जब पावन सत्ता सिंहासन पर
कामी व्यभिचारी शोभित होंते ,
संवेदन घुट-घुट कर निज शाळा
मरने से पहले ही मर जानी है -
उत्सव में अनुशंषा नारी की
जब मधुशाला सी हो जाती है ,
अपने ही घर में ही एक बेटी
स्वयं को अपराधी ठहराती है -
एक नारी ही ,एक नारी से
हो अवनत बेटे की मांग उठाती है
हो बलात्कृत घर आँगन बाहर
अपनी ही नज़रों से गिर जाती है -
उदय वीर सिंह



सोमवार, 25 नवंबर 2019

क्या बात होती


रेगिस्तानी जर्रों में थोड़ी खाद होती बरसात होती ,
वादियों सी हरियाली,महक होती क्या बात होती -
ठोकरों में थोड़ी महब्बत ,नरमी थोड़ी नमी होती ,
फूलों की तरह सिने पर लगाये जाते क्या बात होती-
समझते दर्दो-गम के पैरहन को कैसे ढोते हैं लोग,
महल भी मंदिरों से सिजदे में होते क्या बात होती -
उदय वीर सिंह



भावों के वंध अतिरंजित हैं ....


  भावों के वन्ध अतिरंजित हैं
     नेपथ्य उठाना होता है -
षडयंत्री उत्सव में केवल गाल बजाना होता है ,
बजता वाद्य बजाता कोई साज दिखाना होता है
तान सेन के किरदारों में मंच सजाये जाते है ,
कोई नेपथ्य से गाता है सिर्फ अधर हिलाना होता है-
**    भावों के वन्ध अतिरंजित हैं
        नेपथ्य उठाना होता है -
कंचन के पात्रों में मधु संग गरल प्रतिष्ठित होते हैं ,
अर्थ नियोजित होता है केवल हंस के पिलाना होता है
बाबा वैरागी को छलने दस्यु अपाहिज बनता है
क्रंदन करुणा के स्वर आडम्बर अश्व उठाना होता है -
**      भावों के वन्ध अतिरंजित हैं
          नेपथ्य उठाना होता है -
उदय वीर सिंह

शिक्षा ! कैसी थी कैसी हो गयी ....


शिक्षा ! कैसी थी कैसी हो गयी ..?
धूल धूसरित देख रहा हूँ
अब शिक्षा के अवदानों को ,
निर्धन याचक बेबस कुंठित हैं,
आरक्षित है धनवानों को-
**
अद्वितीय प्रमेय पथ सृजित करेंगे
ज्ञानोदय होगा नव-दिनकर का ,
हतभाग्य विपणन की बस्तु बनी
बिकते देख रहा प्रतिमानों को -
**
शिक्षा होगी ,भारत समृद्ध होगा ,
जिजीविषा उन्नति की जाग्रत होगी
हर ह्रदय सहभाग सराहेगा,
भरेंगे रंग प्रज्ञा के परिधानों को -
**
गंतव्य कहाँ, पग किधर चले
विस्मृत दिशा पग किधर गए
त्याग उर्जा का संग्रह संवर्धन
जोड़ रहे मुद्रा से शिक्षा संस्थानों को -
**
उदय वीर सिंह





रविवार, 17 नवंबर 2019

मायिन


मायिन [ लघु कथा ]
जितने दिन गर्भ में रहा उतने ही दिन लगभग दुनियां में आये हुए थे. उसके मासूम बेटे को । माँ चानो गर्दिशी व गुर्बती के कारन कोई नया पटोला अभी नहीं दे पाई थी अपने मासूम को । कुछ पड़ोसियों परिचितों कुछ गरीब मायके वालों से मिले थे,काम चल रहा था , प्रतीक्षा थी दीपवली की कि उसका परदेशी पति नारद जरुर कोई मदद करेगा ,करीब दस महीने से कोई मदद नहीं भेजा है । पर चेहरे पर मुस्कराहट भी कम नहीं बहुत दुलार देती थी अपने मासूम बेटे को । नाम भी रखा उसका नंगू । इधर बिच में नंगू काफी बीमार भी हो गया था जब बाढ़ का प्रकोप था ,डेंगू हो गया था ,बड़ी मुश्किलों से उसकी जान बच पाई, पर घर के गहने व बेचने लायक सामान सब गिरवी या बेचने पड़े ।
कुलदीप सिंह गाँव के सरपंच के पास चानो गयी थी बोली -
बाबूजी ! मेरा आधार कार्ड में जन्म तिथि गलत हो गयी है उम्र 85 साल बता रहा है , सुधार के लिए कई कागज ,बयान बनवा कर दिए हैं , मुझे मेरी जनम तिथि नहीं मालूम ...पता नहीं कब सुधार होकर आएगा ..
मेरा राशन कार्ड नहीं बन पा रहा है .....मेरे घर में अन्न का एक दाना नहीं है ,मैं कई दिन से भूखी हूँ मेरा लल्ला नंगू बीमार व भूख से रोता है ,बाबूजी मेरा राशन -कार्ड बनवा दीजिये ,आप कोटेदार जी को बोल देंगे तो वो बना देंगे ,वो आपके रिश्तेदार भी हैं ।
तू गटुआ की बीबी है ?
हाँ बाबूजी । चानो बोली
जा करन सिंह को बता देना ,कि बाबूजी भेजे हैं .राशन कार्ड बनाने को
वो बना देगा . जा सरपंच ने अस्वासन दे कर भेजा
सरपंच के कहने पर भी चानो का राशन कार्ड ,,आधार कार्ड के आभाव में नहीं बना .. अभी इंतज़ार में है
..... नंगू को बुखार है लगातार रो रहा है ,पड़ोसन ने थोडा सत्तू चानो को दे गयी थी ,जिसे खाकर रात अपनी भूख को शांत कर पाई थी , कोई सहारा आस नहीं दिख रही थी मद्धिम चिराग भी टिमटिमा कर बुझ गया था
कितना किससे अपना दुखड़ा रोये ,कौन जातन करे ?,शरीर कमजोर ,दुधमुंहाँ बच्चा , स्तन से दूध निकलता नहीं ,परन्तु नंगू उसे हमेशा मुंह में डाले रखना चाहता है ।शायद उसे दूध का अहसास होता है,मजबूर चानो कभी पुचकारती दुलारती और दूध पिलाने से बचती और नंगू है की पीने की जिद करता है ..आखिर बेबस माँ उसे निराश नहीं करती ...थोड़े देर किए लिए नंगू चुप हो जाता कुछ पल शांति फिर भूख का मारा रोना शुरू करता .....
भूख लाचारी के दंश से मर्माहत चानू चारपाई के पास बैठ गयी । सुबह सूरज निकलने लगा , रात को रत्ती भर भी चानो सो न सकी ,आँखों को नींद नहीं मयस्सर हुयी इस जीवन का क्या करे, कैसे संभाले अपने आपको ..। रिश्ते नाते कब तक ढोयेंगे बोझ की तरह ..पति संज्ञा सुन्य किसी और ठांव मस्त ,बस्ती के लोग बाग़ अपने कार्यों में मशगुल हुए ,रोटी रोजी के जुगाड़ में कौन किसकी परवाह करे ....चलते गए ।
माँ बेटा दोनों भूखे ,दोनों के आँखों में अश्रू प्रवाह निरंतर बहते रहे . चानो अपने भाग्य को रोती .. दोनों बाँहों के बीच पड़ा नंगू याचना और आश भरी निगाहों से माँ की ओर .लाचार माँ भूखे बीमार बेटे की ओर देख रहे थे .
माँ ने आँचल से ढक. भूखे नंगू को स्तनपान कराने लगी .. सूखा स्तन नंगू चूसता रहा ,भूखी शरीर से दूध नदारद था ..
अचानक कुछ दर्द सा हुआ ,चानों ने देखा तो नंगू का मुंह खून में सना हुआ था ।
घबरायी कहीं बेटा खून की उलटी तो नहीं कर रहा ... ध्यान से देखा तो उसके स्तन से खून रिस रहा था नंगू का मुंह खून से भरा ..
दुर्दिन व् अवसाद का इससे बड़ा बोझ और क्या हो सकता था ,एक माँ को अपने बच्चे को पालने के लिए उसके पास ......
चानो ने बड़ा फैसला ले लिया जो कदाचित कभी कभी लिए जाते हैं , ये जिंदगी कितना और सितम देगी ..पता नहीं ... ?
उसने जिस हाथ से बेअंत लाड करती थी उसी हाथों से अपने लाल का गला घोंट दिया और सामने कुंए में छलांग लगा कर अपनी बेबस लाचार जिंदगी के अध्याय को बंद कर दिया ,शायद इसे सुगम बनाने का और कोई पथ शेष न था ।
उदय वीर सिंह






शनिवार, 16 नवंबर 2019

तालीम भी गयी हाथ से ...


तालीम भी गयी हाथ से ....
आज बेटे का पत्र आया, बहुत उदास कर गया ,
खरीदने की कोशिश में था मिर्जई,बे-लिबास कर गया -
इल्म की घेरेबंदी से अब हौसला पस्त हो गया,
रह गयी अधूरी तालीम,ठेकेदारों का मुंह उजास कर गया -
पास जागीर दौलत तनख्वाह कोई,
छीन रहा इल्म का औजार,जींद रुसवा कर गया -
उदय वीर सिंह



मंगलवार, 12 नवंबर 2019

हौसले तूने दिए

जर्रों को आफताब होने के हौसले तूने दिये,
रब की रज़ा थी ,नायब फैसले तूने किये -
अँधेरे जाएँ तो कहा जाएँ होंठ  सवाली थे 
मिटाकर ऐब उनका ,उन्हें उजले तूने किये -
तेरा मुकम्मल नूर वफ़ा की राह ले जाता ,,
झूठ ,पाखंड के सिने  पर हमले तूने किये - 
उदय वीर सिंह 

शनिवार, 9 नवंबर 2019

बादल मद में चूर है .....

लगे जबान पर ताले,संवेदन मजबूर है ,
इन्साफ बहुत दूर है -
हाथों में हथकड़ियाँ ,पैर बंधे बिच बेड़ियाँ,
पथ कंकड़ भरपूर है !
मंजिल बहुत दूर है -
धरती पर अंगारे ,पंछी मारे- मारे ,
जलने को मजबूर है !
आसमान बहुत दूर है -
झरते झर-झर आंसू,बेबस अंख बे-नूर ,
नींद नयन से दूर है !
ख्वाब बहुत दूर है -
प्याऊँ सुखा ,कुंए गहरे ,घडियालों के कामिल पहरे
नीर पहुँच से दूर है !
बादल मद में चूर है -
उदय वीर सिंह