शनिवार, 30 नवंबर 2019

असत्य आवेदन नारी से ...


मंदिर में एक बेटी देवी है
बाहर सामान पुकारी जाती है
सत्ता स्वार्थ के उत्सव में
विष-कन्या सी उतारी जाती है -
जब मंदिर मस्जिद संसद से
सदा सहानुभूति की आती है ,
नर पिशाच की दुर्बल आकृति
गिरिवर सी होती जाती है -
जब पावन सत्ता सिंहासन पर
कामी व्यभिचारी शोभित होंते ,
संवेदन घुट-घुट कर निज शाळा
मरने से पहले ही मर जानी है -
उत्सव में अनुशंषा नारी की
जब मधुशाला सी हो जाती है ,
अपने ही घर में ही एक बेटी
स्वयं को अपराधी ठहराती है -
एक नारी ही ,एक नारी से
हो अवनत बेटे की मांग उठाती है
हो बलात्कृत घर आँगन बाहर
अपनी ही नज़रों से गिर जाती है -
उदय वीर सिंह



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