रेगिस्तानी जर्रों में थोड़ी खाद होती बरसात होती ,
वादियों सी हरियाली,महक
होती क्या बात होती -
ठोकरों में थोड़ी महब्बत ,नरमी
थोड़ी नमी होती ,
फूलों की तरह सिने पर लगाये जाते क्या बात होती-
समझते दर्दो-गम के पैरहन को
कैसे ढोते हैं लोग,
महल भी मंदिरों से सिजदे में होते क्या बात होती -
उदय वीर सिंह
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