सोमवार, 25 नवंबर 2019

भावों के वंध अतिरंजित हैं ....


  भावों के वन्ध अतिरंजित हैं
     नेपथ्य उठाना होता है -
षडयंत्री उत्सव में केवल गाल बजाना होता है ,
बजता वाद्य बजाता कोई साज दिखाना होता है
तान सेन के किरदारों में मंच सजाये जाते है ,
कोई नेपथ्य से गाता है सिर्फ अधर हिलाना होता है-
**    भावों के वन्ध अतिरंजित हैं
        नेपथ्य उठाना होता है -
कंचन के पात्रों में मधु संग गरल प्रतिष्ठित होते हैं ,
अर्थ नियोजित होता है केवल हंस के पिलाना होता है
बाबा वैरागी को छलने दस्यु अपाहिज बनता है
क्रंदन करुणा के स्वर आडम्बर अश्व उठाना होता है -
**      भावों के वन्ध अतिरंजित हैं
          नेपथ्य उठाना होता है -
उदय वीर सिंह

1 टिप्पणी:

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 25 नवम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!