भावों के वन्ध अतिरंजित हैं
नेपथ्य उठाना होता है -
षडयंत्री उत्सव में केवल गाल बजाना होता है ,
बजता वाद्य बजाता कोई साज दिखाना होता है
तान सेन के किरदारों में मंच सजाये जाते है ,
कोई नेपथ्य से गाता है सिर्फ अधर हिलाना होता है-
** भावों के वन्ध अतिरंजित हैं
नेपथ्य उठाना होता है -
कंचन के पात्रों में मधु संग गरल प्रतिष्ठित होते हैं ,
अर्थ नियोजित होता है केवल हंस के पिलाना होता है
बाबा वैरागी को छलने दस्यु अपाहिज बनता है
क्रंदन करुणा के स्वर आडम्बर अश्व उठाना होता है -
** भावों के वन्ध अतिरंजित हैं
नेपथ्य उठाना होता है -
उदय वीर सिंह
1 टिप्पणी:
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 25 नवम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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