रविवार, 30 अगस्त 2020

शहनाई बोलती है ।












 ख़ामोशी कितनी सागर की गहराई बोलती है

नजदीकी कितनी बादल से अमराई बोलती है।

पाँव बताते हैं कीचड़ या संगमरमर की माया,

कितना दम है स्वांसों में,शहनाई बोलती है

आघातों प्रतिघातों में या गर्दिश झंझावातों में ,

चुप हो जाती जब दुनिया,तब माई बोलती है।

जितनी झूठी मक्कारी,उतना रेशम का चोला ,

मर्ज छुपाये कब छुपता ,वैद्य दवाई बोलती है

उदय वीर सिंह

 

 

 

 

शनिवार, 20 जून 2020

मानस का कोलाहल ...


मानस का कोलाहल
स्वर से वंचित होता है ,
जन-मानस का कोलाहल
भीड़ से मंचित होता है -
वर्जनाओ का खंडित हो जाना ,
कोलाहल में संचित होता है -
कुमुक धूल -धूसरित हो जाती ,
विष तो किंचित होता है -
उदय वीर सिंह

लंबरदारी तेरी है .....


सुनना तुमको होगा वीर,कहने की बारी मेरी है ,
पत्थर को पत्थर ही कहना अब लंबरदारी तेरी है -
तू गायक होगा महलों का ,इससे कोई उज्र नहीं ,
उजड़े हुए दयारों की भी,अब जिम्मेदारी तेरी है -
सर्वस्व न्योछावर कर बैठे जब मांगी तूने सहकार ,
दुर्दिन पीड़ा में जन-मानस की खातिरदारी तेरी है -
नील गगन के नक्षत्रों की ओर निहारो बारम्बार ,
निचे खड्ड उगे जन-पथ की साम -सम्भारी तेरी है -
राज दरबारी साधक होगे ,सुगंध मलय के सेवनहार
लोक -जीवन की पीर और क्रंदन चिंगारी भी तेरी है -
परिमल प्रसून मधु मद मदिरालय से रंज नहीं ,
बे-बस भूखे नंगे,जन की रख- रखवारी भी तेरी है -
उदय वीर सिंह



बुनियाद देती है ...


माना कि जिंदगी अवसाद देती है,
फिर भी जिन्दादिली को दाद देती है-
परवाज जरुरी है दुनिया देखने को ,
सार्थक सोच जिंदगी को बुनियाद देती है-
मंजिल को पाने का सूत्राधार हुआ करता -
ठोकर को भी जिंदगी धन्यवाद देती है-
उदय वीर सिंह


यश पर्व हमारा बनता है ...


भारत भूमि ने उत्सव बख्सा प्राणोत्सर्ग हमारा बनता है ,
रोम - रोम है ऋणी हमारा ,उतारें कर्ज हमारा बनता है -
जिसके आँचल हमने पाया,प्रेम -पयोधि का मान शिखर ,
सर्वस्व न्योछावर करने का यश - पर्व हमारा बनता है -
सगल शहादत संस्कारों में , सद्द गुरु - पूज्यों ने साजा है ,
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपिगरियसी गर्व हमारा बनता है -
समय मांगता वलिदान वतन से ,शीश हथेली रखना होगा ,
अरदास फतहि की करनी होगी , सत्कर्म हमारा बनता है -
उदय वीर सिं


रविवार, 14 जून 2020

पठाते सुनेहा ....


समय नहीं है सोने का ....


[...... महामारी से जंग लड़नी ही होगी .. ]
अम्लीय बवंडर जाग्रत है,यह समय नहीं हैं सोने का
संयम आत्मबल संग रहे ,अवसर है उर्जित होने का-
भरा रहे मन भावों से ,मानवता के सद्द -ग्रथ उचारेंगे
जीवन रहा, हर राग बनेंगे,यह समय नहीं है रोने का -
यदि उपवन जल जायेगा ,फिर उत्सव कौन मनायेगा
जन -मानस की पीड़ा का ,हतशोक - गान रह जायेगा
राजा-रंक - फकीर समष्टि जड़ -चेतन प्लावित होंगे ,
रच प्रेम -भाव-सहकार त्याग ये उचित समय है बोने का -
उदय वीर सिंह






समझा देंगे हालात मेरे .....

समझाऊँ इससे अच्छा है कि 
समझा देंगे हालात मेरे ,
पाओगे महशर में भी जिन्दा ,
इंसानी ख्यालात मेरे -
ख्वाहिशमंद रहा हूँ वीरे ,
गुल -गुलशन के हंसने का ,
बिक जाओगे क्रेता मेरे ,
जब परखोगे जज्बात मेरे -
अंधड़ और तूफानों की दस्तक
 बेशक मंजर  बदलेंगे 
कायम होंगे समय- शिला पर 
तूफानी सवालात मेरे -

उदय वीर सिंह

जो वो चाहते थे ..


जो वो चाहते थे ....
उन्हें मुकाम मिला ,जो वो मुकाम चाहते थे ,
बदले जमीर के दाम मिला जो दाम चाहते थे-
चले गए खुदगर्ज अपनी जन्नत की तलाश में,
उन्हें हिन्दुस्तान मिला,जो हिन्दुस्तान चाहते थे-
कामयाबी के लिए ,उम्र लम्बी हो ये जरुरी नहीं ,
वतन के लिए शहीद हो गए ,जो नाम चाहते थे -
कितना आसान है पराये कंधे से निशाना साधना ,
मुराद पूरी हुई ईनाम मिला ,जो इनाम चाहते थे -
मजबूर कौन था ,मजबूत कौन था इजलास पर ,
मुकरा गवाह दिया बयान जो वो बयान चाहते थे -
बे-नूर आँखों को बड़ी सिद्दत से दर्पण दिखा रहे ,
सूखे लबों से आया वही जो वो पैगाम चाहते थे -
उदय वीर सिंह

शनिवार, 13 जून 2020

दरार आ गयी .......


 दरार गयी .....
अक्ल की वांछित दाढ़ गयी,
विपदाओं की पूरी बाढ़ गयी -
मौन-व्रत था अपना घर जलने तक ,
जब ख़ाक हो गया तो दहाड़ गयी -
अतिउत्साह में सागर को सरोवर कहना ,
कागजी किश्ती टूट दो फाड़ गयी-
काठ की हांडी में लंगर कैसे पकता जी ,
आग और हांडीके बिच दरार गयी -
बाँध कर बारूद पल्लू में सौगात कहना,
एक चिंगारी लगी कि साड़ गयी -
उदय वीर सिंह

सोमवार, 8 जून 2020

हम उम्मीद से हैं ...


नमस्कार मित्रों ! ..हम उम्मीद से हैं ....
हौसले हैं साथ तो पार कर दलदल भी निकलेगा ,
उम्मीद से हम हैं कि सून्य से संबल भी निकलेगा -
प्राचीरों का शीतल वायु ने ,प्रतिबन्ध कब माना ,
पत्थर तोड़कर सोतों से निर्मल जल भी निकलेगा -
उदय वीर सिंह



रविवार, 7 जून 2020

हम कहाँ पहुंचे .....



श्री शिखर पर जाना था,हम अधो-धाम पहुंचे,
विकास तज ,विनाश के उच्च-प्रतिमान पहुंचे -
आत्म विवेचना का निषेध आत्मघात बनता है
जीवन में श्रृंगार रचना था ,कि शमशान पहुंचे -
जंग, स्पर्धा मानवता के घाती शत्रुओं से थी ,
हम जिद्द मतभेद लेकर मौत के ग्राम पहुंचे -
घृणा,प्रतिशोध की आग,भष्म हो जाएगा वतन
वैर,मतभेद का मद पिये मृत शोध-संस्थान पहुंचे -
उदय वीर सिंह