मेरी छोटी सी घारी अटारी लगे
खाली मुट्ठी ही मेरी पिटारी लगे -
घात-प्रतिघात जबसे चलन हो गया
आँख अपनों की कातिल शिकारी लगे-
वेदना बस गयी उम्रभर के लिए
बूंद शबनम की तपती अंगारी लगे -
प्रीत ही हमने
बांचा ,संवारा सदा,
जाने कैसे किसी को ये गारी लगे -
हाथ पकड़ा तो रस्ता सरल हो गया,
आज चाहा पकड़ना बिमारी लगे -
घोर बिपदा में कांटे भी कोमल लगे
आज कंगन भी छुरी कटारी लगे -
हमने माँगा ही क्यों आज पछता रहा
हाथ अरदास के ही भिखारी लगे -
आज सोचा बहुत ,बैठ रोया बहुत
कैसे अपनों को अपने ही भारी लगे -
उदय वीर सिंह
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