सोमवार, 13 अप्रैल 2020

हिन्द की चादर [ गुरु तेग बहादुर सिंह जी महाराज "

गुरु तेगबहादुर सिंह महाराज के जग-अवतरण दिवस की [गुरु पर्व की लख लख बधाई ]-
[ बेनती उत्सव सादगी व सम्मान से अपने हृदय व घरों में ही मनाएं ]
हिन्द की चादर " उत्सर्ग शीश का होगा वचन भंग का प्रश्न नहीं ****************धर्म पंथ की राह सजेगी नीच कीच का संग नहीं
त्याग करुना व वलिदान के प्रणेता नवम पातशाह श्री गुरु तेगबहादुर जी महाराज का जन्म प्राचीन मतानुसार ' बैसाख पंचमी सम्बत 1678 [5 अप्रैल 1621 ई सन] जिला अमृतसर [पंजाब ] श्री गुरु हरगोबिन्द सिंह साहब जी के घर हुआ था ।
यह वो दुरूह काल था जिसमें अपने धर्म का पालन करने के लिए भी कर [जजिया कर ]चुकाना होता था भारतीय जन-मानस आर्थिक सामाजिक शैक्षिक व अन्य अकथनीय पीड़ा की बेड़ियों में आकंठ जकड़ा हुआ था ।कोई राह शेष नहीं थी।दुश्वारियों की दुर्गन्ध चहुँ ओर बिखरी थी, प्रतिबंधों प्रताड़ना का अभिशप्त काल जिसमें जीवन को अकथ अमानवीय अपमानजनक मूल्य चुकाने पड़ते थे एक पल सुख की स्वांस के लिए ।
भारतीय सामाजिक ,बौद्धिक समूहों की पहल ,समय की मांग पर गुरु तेगबहादुर जी महाराज ने उस पथ को चुना ,उस वचन को दिया, उस दर्शन को अभिप्राणित उस युग को जिवंत किया जो आत्मोत्सर्ग का था ।कहा था -
" पहले मोमिन तू हमको बना ले , हिंदुआं नू फेर तूं कहीं .... "
गुरु महाराज के 116 श्लोक [ वाणी सृजन ] 15 रागों में पूज्य दशम गुरुग्रंथ साहिब जी महाराज में जिवंत हैं जो नित्य जीवन को नित्य जीवनामृत प्रदान कर अभिसिंचित करते हैं । जीवन ऋणी है उनकी दात का उनका जीवन के प्रति उद्दात्त मानवीय दृष्टिकोण ,स्पष्ट दर्शन, त्याग ,करुना अर्पण वलिदान का अकल्पनीय अविश्वसनिय आत्मबल किंचित मात्र भी विचलित दिखाई नहीं देता । समग्र जीवन के हितार्थ स्व का मोह उन्हें छू भी नहीं पाया । तमाम झंझावातों मर्मान्तक पीड़ा असहनीय यातनाओं व विषमताओं में एकेश्वर वाद ,मानवीय मूल्यों भारतीय संस्कृति संस्कारों का परचम अनन्त गगन की उंचाईयों तक फहराया झुकने न दिया आत्मबल के उच्च शिखर को,अक्षय अमर सन्देश दे दिया युग को की कितने भी हाथ आततायियों अधर्मियों के क्रूरतम हो जाएँ ,ममता और त्याग के प्रकाश पुंज को मद्धिम नहीं कर सके ,बुझाना तो दूर की बात है ।
धर्म सत्य न्याय के हितार्थ सर ,आखिर तक आत्मबल प्रत्यांचाओं से संधान पाते रहे ,न रुके किसी दबाव अपमान प्रताड़ना या विवशताओं से अपने समक्ष भाई मत्ती दास जी ,भाई सत्ती ,दास जी व अन्य अद्वितीय पंथ के जांबाजों को निर्मम तरीकों से शहीद होते देख रंच मात्र भी विचलित नहीं हुए .इस्लाम स्वीकार नहीं किये । वो दिन भी आया जब समस्त प्रलोभन यातना शंसय अपमान असफल हो गए ,
24 नवम्बर 1675 को दिल्ली के चांदनी चौक पर आततायी औरंगजेब ने शीश कलम करा दिया । जहा आज का शीशगंज गुरुद्वारा शोभायमान है ,युगों तक भारतीय जन-मानस को भारतीयता,भारतीय संस्कृति के प्रति ,धर्म के प्रति जाग्रत व जय उद्घोष करता रहेगा ।
उदय वीर सिंह

कोई टिप्पणी नहीं: