तुम अजात-शत्रु नहीं [ कोरोना ...]
लबों को बंद रखता हूँ ,
पत्ते लगा लिए ....
हम भी इसी देश के बासिन्दे हैं,
कुछ रस्ते बना लिए ...
क्या गिला करूँ ,सरकारों सल्तनत से ,
उन्हें मेरी आवाज चुभती है ,
कोई बाँट न सका गम मेरे,
हमने बस्ते बना लिए .....
तुम्हारे दीपों के बचे तेल
मेरी कढ़ाही में टपक गए
उपेक्षा में मिले तेरे काँटों से
हमने गुलदस्ते बना लिए -
उदय वीर सिंह
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