रविवार, 26 अप्रैल 2020

स्पंदन खोज रहा हूँ ...

संगमरमरी दहलीजों पर संवेदन खोज रहा हूँ
ठेकेदारी माथों पर स्पंदन खोज रहा हूँ-
श्रद्धा थी ,विस्वास भरा था ,आशा होगी पूरी,
जुआघर मदिरालय में मैं चन्दन खोज रहा हूँ -
नक्कारों में तूती की आवाज सुनाई कैसे दे ,
शमशानों में नायक सा अभिनन्दन खोज रहा हूँ -
लोरों के निशान ही दिखते सूखे चेहरों की झाईं
पथराई आँखें लब सिले हुए क्रंदन खोज रहा हूँ -
देकर खून पसीना ,वो भरे तिजोरी आजीवन
आरोग्य-पत्र के याचन पर अनुमोदन खोज रहा हूँ -
ईद दिवाली बैसाखी के दिन आंसू बनकर बह जाते
खाली हाथ खाली दोने ,मैं व्यंजन खोज रहा हूँ -
उदय वीर सिंह

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