मंगलवार, 14 अप्रैल 2020

कहीं रोता चिकित्सक है कहीं बीमार रोता है


कोरोना आतंक के कारण जो ह्रदय विदारक घटनाएँ घटित हो रही हैं मर्मान्तक पीड़ा दे रही हैं स्वयं मात्र को तसल्ली स्वरुप अभिव्यक्ति से रोक नहीं पाया ... हमने कोरोना-काल में अपनी आँखों से दग्ध जीवन के कितने रूप देखे
उदय वीर सिंह
कहीं अभिशप्त ममता है,कहीं आधार रोता है
कहीं आँचल सिसकता है,ह्रदय लाचार रोता है -
कहीं पर भूख रोती है ,प्रतीक्षा के दिवस बीते ,
कहीं उद्योग रोता है , कहीं बाजार रोता है -
खेत खलिहान उजड़े हैं बाग़ उद्यान सूखे हैं
ढोर -डंगर कहीं भूखे , कहीं घर-बार रोता है -
हाथ हैं काम से बंचित , बे-घर हुआ जीवन ,
फ़कत रोटी के हैं लाले ,कि कामगार रोता है -
मरा है आँख का पानी ,कहीं उत्सव मनाते हैं,
कहीं सहकार रोता है ,कहीं अधिकार रोता है -
रुकी है स्वांस बेबस की वसूली भी चरम पर है ,
कहीं साहूकार हँसता है ,कहीं कर्जदार रोता है -
कोरोना से क़यामत का कोई रिश्ता पुराना है
कोई कोना नहीं खाली ,सारा संसार रोता है -
मौत का रूप जो होता ,वो आंसू रोकता कैसे ,
चिकित्सक को दिए कांधा कहीं बीमार रोता है -
उदय वीर सिंह


कोई टिप्पणी नहीं: