16 -श्रमिक स्पेसल ट्रेन .. [ कहानी ]
हरिचरण सिदा करीब सात- साल पहले हमारे पास घरेलु कार्य करता था । वह गोरखपुर शहर
से करीब 35 किमी दूर एक गाँव लहरी तहसील चौरी चौरा का रहने वाला 34-35 वर्षीय
सामान्य कद काठी का युवक था । हमारे एक मित्र ने उसे
हमारे पास लाये थे, बेरोजगारी की समस्या थी सो हमने उसे अपने यहाँ रखा ,उसके आचरण
व्यव्हार व इमानदारी को देख हमने अपने आवास के पास ही अपने अहाते के एक कमरे में
रहने की व्यवस्था करवा दी ,कुछ दिन बाद वह अपनी पत्नी भोली व बच्चे को भी लाया था ,उसकी
पत्नी भोली भी हमारे परिवार के साथ घुल मिल गयी और हमारे परिवार के घरेलु कार्यों
में मदद कर देती थी । बिजली
पानी आवास अन्न-भोजन आदि उसे हम मुहैया कराते थे क्यों की यह सब हमारे पास आसानी
से शुलभ था अतिरिक्त व्यवस्था नहीं करनी थी , बड़े आनन्द से वह रह रहा था । .दो साल पूर्व
उसने बड़ी विनम्रता से अपने मुम्बई जाने का आग्रह किया,और चला गया,अपने परिवार को
भी अपने गाँव ले गया था ।
कल रात साढ़े एग्यारह के करीब मुम्बई से हरिचरण सिद्धा का फोन आया था । वह घबराया हुआ था बता रहा था स्वर में भय व
कम्पन था ।
वह बता रहा था वीर
जी ! हम किसी भी तरह अपने गाँव लौटना
चाहते हैं , जीवन बचाने के लाले पड़ गए हैं । कोरोना महामारी की वजह से सारे
रोजी-रोजगार कल –कारखाने प्रतिष्ठान कार्यालय रेहड़ी फुटपाथ व्यवसाय सब बंद हो गए
हैं ,काम मालिकों ने अपने मजदूरों को कुछ अहैतुक राशि देकर काम पर आने से मना कर दिया है, आय का कोई
साधन नहीं बचा , मकान-मालिक ने किराया न पाने कारन खोली से सामान निकाल कर बाहर
रखवा दिया ,पास कुछ धन था ख़त्म हो गया अब सिर्फ दूसरों की आस पर ही हम लोग हैं
,..वीर जी जीवन नरक से भी बदतर हो गया है हम घर आना चाहते हैं ,
कोई
सरकारी सहायत नहीं मिली ? मैंने कहा
सरकार कह रह रही है आप लोग जहाँ हैं वहीँ रहें हम व्यवस्था करेंगे ,पर ऐसा
होता नहीं दिख रहा ,कल सवेरे चार घंटे की प्रतीक्षा में कुछ पाव रोटी मिली थी खाया
,और अभी तक कुछ नहीं मिला, हम एक फ्लाईओवर के निचे किसी तरह वर्षात व धुप से बचकर
समय काट रहे हैं ..
वीर
जी ! आप बड़े हैं आपका दिल बड़ा है मैंने फोन किसी दुसरे के फोन से किया है ,मेरे
मोबाईल में पैसे नहीं हैं मेरा मोबाईल रिचार्ज करा दीजिये कुछ जरुरी बात घर व अन्य
से भी हो जाएगी । थोड़ी देर पहले पता चला है की कल कोई रेलगाडी प्रवासी मजूरों के
लिए चलेगी अगर किसी तरह मिल जाएगी तो शायद जीवन मिल जायेगा । ... आपका जीवन भर
अहसान मानुगा वीर जी ! और फोन कट गया ...
मैंने कोशिश पुनः की पर बात न हो सकी ।
मैं स्तब्ध रह गया ... मैं उसकी बेबसी को समझ सकता था ,अखबारों समाचार
चैनलों फेसबुक व्हाटसाप आदि से मिल रही,सूचनाएं कितनी भयानक है ह्रदय को झकझोर
देती हैं ..मैं चरणदास की
चिंता व शंसय को महसूस कर
सकता हूँ । मैंने उसी नम्बर को फिर लगाया ,
हेलो हेलो ... उधर से आवाज आई
मैंने कहा भाई जी नमस्ते !
नमस्ते ! बोलो भाई आप कौन ?
मेरी अभी हरीचरण सिद्धा से बात हुयी है ,कृपया
पुनः उनसे बात हो सकती है ? मैंने निवेदन किया ।
नहीं जी ! मैं खाना मिलने वाली कतार में हूँ ,वह बहुत पीछे
है ...मैं अपनी भोजन की कतार उससे बात करने के चक्कर में नहीं छोड़ सकता ...आप बात
समझिये ,किसी और नंबर से बात करो .... उधर से आवाज आई ।
जी ! मैंने संक्षिप्त उत्तर
दिया ।
इस उत्तर से मैं किंचित भी
हैरान नहीं हुआ ,भूख और भोजन की आवश्यकता और जीवन-संघर्ष की व्यथा-कथा इस दरुनिक
असहाहय स्थिति में भली भांति, समझ सकता हूँ । कई दिनों का भूखा प्यासा जीवन पहले
भोजन को ही प्राथमिकता देगा ।
समाचार पत्रों न्यूज चैनल्स इलेक्ट्रानिक
मिडिया से आती खबर वीडियो के दृश्य ह्रदय विचलित कर देते हैं , आवागमन के समस्त
बंद संसाधन महामारी से बचाने की अपर्याप्त व्यवस्था ,
बे-घर,विपन्न रोजगारविहीन
साधनहीन जन कब तक वेदना सहन कर पाते,शायद संभव भी नहीं था , पलायन का कठोरतम
निर्णय लेने को मजबूर हुए , भूखे प्यासे नंगे पैर पैदल अपने अघोषित गंतव्य के लिए
सडकों हजारों किमी के दुरूह सफ़र पर,जो शायद कभी स्वप्न में भी न सोचे होंगे,
जीवन को बचाने की जद्दोजहद
में बिना परिणाम की चिंता किये निकल पड़े थे ।विषम चिलचिलाती धुप में चलते बृद्ध ,मासूम
,युवा, वीमार ,अपाहिज, चेहरे पर हताशा मायूशी सिर पर सामन गोंद में बच्चे गर्भवती स्त्री की
कराह भूख-प्यास की तपिश ,महामारी की विद्रूपता को रेखांकित करते हैं ।
शहर में आबाद खुशियों के मेले
थे, आज शहर से रुखसत अपनी शेष जिंदगी को बचाने की लालसा में पलायन करते लोग कितने
बेबस और यतीम हुए हैं ,अव्यवस्था –व्यवस्था को पुनः बांचने ,सोचने को बाध्य करते
हैं ।
मेरी बेचैनी कम न थी मैं हरिचरण से बात कर
उसकी यथासंभव सहायता करना ही चाहता था ,प्रयास असफल हो रहे थे ,मैंने पुराणी डायरी
से चरणदास का सन्योग से एक पुराना नंबर पाया,उत्साह से डायल किया ...आवज आई –
इस नंबर की सारी सेवाएं बंद
कर दी गयी हैं , मेरे मुंह से निकला- धत तेरे की .. अब
मैंने बिना कोई पल गँवाए फोन
पे से उस नंबर को 100 रुपये से रिचार्ज किया ,थोड़ी देर बाद मैंने नम्बर मिलाया ,
हेलो की आवाज आई ..मैं खुश
हुआ
नमस्ते जी ! मैंने अभिवादन
किया
नमस्ते आप कौन बोले हैं ?
किसी स्त्री की आवाज थी
जी ! उदय वीर सिंह
केसे बात करनी है तेरे को ?
कर्कस आवाज थी
जी हमें चरण दास से बात करनी
थी .. मैंने कहा –
चिलम पी के बात कर रिया हे के
..ये मेरा नमबर है ..पहले नंबर पता करके फिर बात करने का ..क्या समझे ...
जी ! समझ गया ..मैंने कहा और
नम्बर विच्छेद कर दिया , मैं स्तब्ध था ..शायद नंबर गलत है ...
मैंने पुन डायरी पलटना आरम्भ किया .एक और नंबर
मिला जो चरणदास के साथी सावन दहिया का है ,जिसे चरण दास काम के लिए मेरे पास लाया
था ,सावन मेरे यहाँ रहा और चरण दास के साथ ही काम छोड़ कर चला गया ,
मैंने वो प्राप्त नंबर
9450...... मिलाया ...
हेलो की आवाज आई ..
नमस्ते जी.... मैं उदय वीर
सिंह
चरण स्पर्श वीर जी ...मैं
सावन ...सावन दहिया बोल रहा हूँ पहचाना आपने .. आवाज आई
हाँ सावन .पहचान गया ..ठीक हो
कहाँ हो ,, मैंने पूछा
हालत ठीक नहीं है वीर जी
.दिल्ली से पैदल घर जाने के लिए निकले हैं अभी आगरा पहुंचे हैं .पैरों में छाले
पड़ गए हैं ..अब शरीर भी साथ नहीं देता क्या
करें ..सब कुछ बर्बाद हो गया है ... कई दिन हो गए हैं भूख प्यास से ..करोना की अलग
चिंता .. हम गरीबों मजदूरों का कोई नहीं .. साधन रस्ते सब बंद किसी तरह छुप छुपा
कर आ रहे हैं ... कितने साथी जीवन छोड़ गए अपना भी क्या ठिकाना .. सावन भरे गले से बोला
।
आप लोग कैसे हैं ? गोरखपुर का क्या हाल है ?
उसने पूछा ।
ठीक है हम सब ठीक हैं ,
हिम्मत रखो दुःख सुख लगे रहते हैं ,कोई न कोई रास्ता जरुर मिलता है आशा रखो ,..मैंने
कहा ।
सावन ये बताओ तुम्हारा कोई बैंक खाता है ? मैंने
पूछा
हाँ वीर जी है । वो बोला
नम्बर दे सकते हो ,मैंने कहा
..और मैंने उसके खाते में नेट
बैंकिंग से कुछ धन स्थानांतरित कर उसे बताया कि
सावन तुम हौसला रखो ,अभी कहीं रस्ते में किसी
ग्राहक सेवा केंद्र से पैसे निकाल कर अपना जीवन बचाओ,फिर जो हो सकता है हम करेंगे
.. घबराना नहीं । मैंने अस्वासन दिया
सावन एक हमारी मदद करो !
जी वीर जी बताये ! वह बोला
क्या तुम चरण दास का फोन
नम्बर जानते हो ? मैंने पूछा
हाँ वीर जी मालुम है ,वो
मुम्बई में है बहुत परेशान है उसके पास भी कुछ नहीं है ,उसकी तबियत भी ख़राब है ..
एक हफ्ते पहले उससे बात हुयी थी ।
मैंने सावन से चरणदास का नंबर
लिया और फोन मिलाने लगा ।
इसी क्रम में एक अज्ञात नम्बर
से मुझे काल आने का संकेत होने लगा ..मैंने फोन उठाया
हलो जी ! मैं उदयवीर सिंह
जी वीर जी ! मैं हरिचरण, ...हरिचरण
सिद्धा .
अरे हरिचरण ! मैं कितना
परेशान था ,तुम्हारा नमबर भी नहीं था मेरे पास पहले अपना नंबर बताओ । मैंने कहा
जी वीरजी मैं बातों- बातों में नम्बर ही देना
भूल गया किसी तरह से आपसे संपर्क किया है ,ये है मेरा नम्बर 94 . ............ । मैं भोजन के पैकेट के लिए जो पास के एक
गुरुद्वारे ने इंतजाम किया है, कतार में लगा हुआ था भोजन मिल गया है, फिर आप से
बात होगी उसने हांफता हुआ सा बताया,
मैंने उसका दिया नम्बर लिख
लिया यह वही नंबर है जिसे अभी थोड़ी देर पहले सावन ने दिया है ,
रात तो अधिक हो गयी है पर मन नहीं मान रहा
मैंने चरण दास के फोन को रिचार्ज किया ,और उससे संपर्क कर पूछा –
चरण दास खाना खा लिया है ?
जी वीरजी खा लिया है , हरिचरण
बोला
तुम्हारा फोन हमने रिचार्ज कर दिया है,अब तुम अपना
बैंक खाता नम्बर बताओ मैंने कहा
हाँ जी ..अभी बताता हूँ
मैंने उसका बैंक खता न लिख उसके
खाते में नेट बैंकिंग से कुछ धनराशि स्थानातरित कर उसे अवगत कराया और हिदायत दिया
की ट्रेन के लिए कोशिश करे और अपनी स्थिति से अवगत कराये ,उसकी हमारी चिंता है
मैं अपनी बालकनी में बैठा चाय पी रहा हूँ ,सवेरे
मनोहारी वातावरण अभी थोडा धुंधलका है सूर्य के उदय में अभी समय है आसमान साफ़ बस्तियों
में हलचल है पर लाक डाउन की स्थिति है इसलिए सड़को पर आम दिनों की तरह भीड़ या शोर नहीं
है
मेरा फोन बजता है पत्नी ने दिया मैंने सन्देश
प्राप्त किया .
हेलो
चरण स्पर्श वीर जी ! मैं हरिचरण
सिद्धा
हाँ हरिचरण बताओ क्या समाचार
है ? मैंने पूछा
वीर जी मुझे श्रमिक स्पेसल
में एक सीट मिल गयी है चहकते हुए हरिचरण ने बताया
बहुत अच्छा हुआ , चलो सरकार
ने बहुत अच्छा किया ,मैंने कहा
वीर जी आपका अहसान जन्म भर
नहीं भुलना मैंने , एक रेल के दलाल ने 1800/- लेकर ये सीट दिलवा ही दिया बड़ा परोपकार
किया वरना मैं नहीं आ पाता ,आपका भेजा रूपया भगवान की भेजी सौगात बन गया मेरे लिए,
लगभग रो पड़ा था चरण दास सिद्धा ने
वीर जी मेरी बोगी न एस -10
सीट न०- 20 है आज शाम के साढ़े बारह बजे दोपहर मुम्बई से छूटेगी
हाँ वीर जी सावन दहिया से भी मेरी आज बात
हुयी थी ,वो बहुत अहसानमंद है आपका उसका एक पैर छालों से जख्मी हो गया था,अब चलने
में असमर्थ था, पर आपकी मदद से वह भी घर पहुँच जायेगा ,एक मालवाहक ट्रक ने 2000 /-
लेकर गोरखपुर तक पहुँचाने का जिम्मा ले लिया है वह ट्रक में बैठ भी गया है ,
चरण दास की आवाज में संतुलन
था ख़ुशी का पुट था उसकी बातों में
ठीक है अपना ख्याल रखना, चलने से पहले खाने
पीने का सामान जो उपलब्ध हो सके रख लेना सेहत का भी ख़याल रखना ,और गोरखपुर पहुँचना
तो सूचित करना ,मैंने कहा
मैं सोचने लगा था सरकारें तो इन श्रमिकों प्रवासियों
को सरकारी खर्चों पर उनके गंतव्य तक पहुँचाने की प्रतिवद्धता व्यक्त कर रहीं थी ,
चरण दास कुछ और ही कह रहा है
मेरे चेहरे पर कुछ इत्मीनान के भाव आये,संयत
हुआ पुनः एक कप चाय के लिए पत्नी को कहा
सामने दीवार पर टंगी टीवी पर
चल रहे सरकारों के पक्ष और विपक्ष के शोर कामयाबी – नाकामयाबी
तर्क -वितर्क आंकड़े,आरोप
प्रत्यारोप यथार्थ से कितना परे थे , उनकी यश-गाथा शुर्खियों से, करोना महामारी
गौड़ हो चुकी थी ,अपाहिज बाप को सायकिल से 1200 किमी तक ढोती बेटी,भूखे नंगे पाँव चलते लोग बैल-गाडी में बैल की जगह जुता आदमी ,हाथ
गाडी से गर्भवती पत्नी मासूम बच्चों को खींचता इंसान ,सडकों पर जख्मी पांवों से रिसते
खून के पड़े निशान, प्रतिबंधित रास्तों से भी छुपकर घर जाने को विबश लोग .रेल की पटरियों
पर आई नींद में कट गए असहाय लोग ध्यान आकर्षण के विन्दु नहीं अपराध के विश्लेषण
विन्दु बने दिखने लगे हैं .. हम किस दौर में हैं
मैंने अपने जीवन में यह दूसरी बार क्रूरतम
निर्मम भयावह त्रासदी सन चौरासी के बाद देखी है ,लाचारी और लाचार क्या होता है मैंने
देखा है, फर्क यही है कि वह त्रासदी मानव निर्मित थी ,यह त्रासदी एक अदृश्य
निर्जीव कण [ वायरस ] ने परोसी है ,मानव मन मानवता के प्रति कितना संवेदनशील हुआ
है कितना कारगर हुआ है विश्लेषण अभी भविष्य के गर्भ में है ..
हरि चरण सिद्धा के परसों सुबह तक गोरखपुर पहुँचाने
की संभावना है . उसकी यात्रा मंगलमय हो रब
से मेरी यही प्रार्थना है
हरि चरण मेरी स्मृतियों में है ,वह मेरे यहाँ
रहता था ,संगीत के प्रेमी था ,मधुर स्वर में लोकगीत व फिल्मों के गीत भी गाता था ,उसकी
शिक्षा दर्जा आठ तक थी पर हिसाब –किताब में कुशल था ,अनुशासन प्रिय था ,कभी शिकायत
का अवसर नहीं दिया था ,मेरे एक मित्र के रोजगार के शिफारिस पर उसे अपने पास रखा था,
किसी भी काम के लिए वह उपयुक्त था इसीलिए उसे अपने आवास के अहाते में ही स्थान
दिया .एक आवाज पर ही वह मानो मन की बात समझ जाता ,
उसके मुम्बई जाने के आग्रह को मैं चाह कर भी टाल
नहीं सका था ,वह शायद मुम्बई में बेहतर भविष्य व उच्च विकास की संभावना देख रहा था
,
वीर जी हम एक निवेदन करना
चाहते हैं
बोलो क्या कहना चाहते हो
मैंने कहा था
मेरे पास ही मेरे बड़े भाई
साहब भी बैठे थे वो भी सुनना चाहते थे मुस्करा रहे थे
वीर जी ! हमने सोचा है इसमें
भोली की भी राय है ,कि मैं मुम्बई जाऊं ,वहा जाकर अपनी किस्मत आजमाऊँ ,सुना है
वहां फिल्म संगीत का बड़ा कारोबार है ,आमदनी के स्रोत भी बड़े हैं ,अगर आप कहें तो
... संकोच भरे शब्दों में कहा था
हरिचरण ! इसमें शर्माने की
क्या बात है , तुम्हें अपने सुखद भविष्य की तलाश करनी ही चाहिए ,ये बात तो तुम्हें
पहले बतानी थी ,न जाने कब से दबाये बैठे हो
और मैंने उसे उसके हिसाब –किताब
से अधिक देकर विदा कहा था
मैं बाथरूम में था मेरे फोन
की घंटी बजी पत्नी ने उठाया , फोन हरि चरण का था
उसने बताया भाभी जी हमारी
हालत ठीक नहीं लग रही है .. वीर जी से बात करा दीजिये
मैं बाथरूम से आया , नम्बर
मिलाया ,
हरिचरण से बात होने लगी, वह
अपनी पत्नी व बेटी को देखना चाहता है कुछ बात करना चाहता है,
रब करे ऐसा संभव हो ,कुछ
घंटों में वह गोरख पुर पहुँचाने वाला है ,पर उसे तेज बुखार खांसी व सिने में के जकड़न
है, साँस लेने में तकलीफ हो रही है , ट्रेन में कुछ मेडिकल सहायता मिली है पर
नाकाफी है
एहतियत के तौर पर उसे अन्य यात्रियों से अलग कर
दिया गया है ,गोरखपुर पहुँचने पर उसे तुरंत कोरोना-वार्ड [ मेडिकल कालेज में ] में
भर्ती करने का निर्णय लिया गया है शायद उसे कोरोना संक्रमित पाया गया है ..मैं
आश्चर्यचकित तो नहीं निराश हुआ ...
मैं उसके बच्चों को सन्देश तो दे दिया हूँ
,उनके आने में संदेह है क्यों की लाकडाउन का काल है,
आखिर ट्रेन गोरखपुर जंक्सन
पर आकर कड़ी हो गयी ,यात्री सोसल दिसटेंसिंग का पालन करते उतरते गए ,उनके परिजनों
को उनसे जांच तक दूर रखा गया . बोगी न० 10 सीट न० 20 से भी एक यात्री उतारा गया जो
अपने पैरों से चल नहीं सकता था ,स्वास्थ्य कारणों से प्लास्टिक की कई तह में लपेट
ट्रेन से अलग दूर रख इंसानों को दूर रहने की चेतावनी दी जा रही थी ,एम्बुलेंस की
प्रतीक्षा थी जो कुछ क्षणों में आगे की कार्यवाही के लिए मेडिकल कालेज फिर अन्य क्रिया
के लिए ..
मुझे बताया गया कि उस शव को
आप या उसके परिजन 10 मी की दूरि से एम्बुलेंस में देख सकते हैं
अभी हरिचरण के परिजन नहीं
पहुँच सके है .. मैं मूर्तिवत रेलवे स्टेसन पर खड़ा एम्बुलेंस की ओर देख रहा हूँ ..शायद
हरिचरण सिद्धा बोले
वीर जी ! मैं अपने गाँव आना
चाहता हूँ
उदय वीर सिंह
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