गुरुवार, 7 मई 2020

बालू की भीत पर घर ...


बालू की भीत पर घर,
बनाते रहेंगे कब तक -
कृशकाय तन पर इत्र,
लगाते रहेंगे कब तक -
भूख और प्यास के विकल्प,
बन जाएंगे मैखाने ,
बाद मरने के जल ,
चढाते रहेंगे कब तक -
बिक गयी या मर गयी है,
अन्तरात्मा हमारी ,
रंग महलों के शवों का बोझ
उठाते रहेंगे कब तक -
जीवन काव्य,श्रृंगार,आस्वासनों पर
जिन्दा नहीं रहता,
नागों को हम दूध ,
पिलाते रहेगें कब तक -
उदय वीर सिंह




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