ख़ामोशी
कितनी सागर की गहराई बोलती है ।
नजदीकी कितनी बादल से अमराई बोलती है।
पाँव बताते हैं कीचड़ या संगमरमर की माया,
कितना दम है स्वांसों में,शहनाई बोलती है ।
आघातों प्रतिघातों में या गर्दिश झंझावातों में ,
चुप हो जाती जब दुनिया,तब माई बोलती है।
जितनी झूठी मक्कारी,उतना रेशम का चोला ,
मर्ज छुपाये कब छुपता ,वैद्य दवाई बोलती है ।
उदय वीर सिंह ।