रविवार, 30 अगस्त 2020

शहनाई बोलती है ।












 ख़ामोशी कितनी सागर की गहराई बोलती है

नजदीकी कितनी बादल से अमराई बोलती है।

पाँव बताते हैं कीचड़ या संगमरमर की माया,

कितना दम है स्वांसों में,शहनाई बोलती है

आघातों प्रतिघातों में या गर्दिश झंझावातों में ,

चुप हो जाती जब दुनिया,तब माई बोलती है।

जितनी झूठी मक्कारी,उतना रेशम का चोला ,

मर्ज छुपाये कब छुपता ,वैद्य दवाई बोलती है

उदय वीर सिंह