शुक्रवार, 31 दिसंबर 2021

कलम कुछ और कहती है..


 





.........✍️

कागज़ कुछ और कहता है,

कलम कुछ और कहती है।

अजमत में सुख़नवर की, 

सुखन कुछ और कहती है।

किराए की ईमारत में हुए

बहुत जलसे किराए पर,

महफ़िल कुछ और कहती है,

नज़म कुछ और कहती है।

कहीं भूला मुसाफ़िर रास्ता, 

या भुलाता है जमाने को,

रास्ते कुछ और कहते हैं,

मंजिल कुछ और कहती है।

आख़िर कांटों की अदालत में 

मुल्तवी हो गए मसले,

ज़ख्म कुछ और कहते हैं,

चुभन कुछ और कहती है।

उदय वीर सिंह।

मंगलवार, 28 दिसंबर 2021

साहिबजादा दिवस ' 27 दिसम्बर '







🙏नमस्कार मित्रों!

एक सुखद अहसास...

  आदरणीय योगी आदित्य नाथ जी महाराज " मुख्यमंत्री " उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा " अद्वितीय अमर वलिदानी गुरु-पुत्रों की शहादत को मान व सम्मान देते हुए  " 27 दिसंबर " की तिथि को " साहिबजादा दिवस " के रूप में घोषित कर मनाने का राजकीय व संवैधानिक  निर्णय ले सिक्ख धर्म-दर्शन रीत व वलिदानों का मर्यादित अभूतपूर्व साहसिक सम्मान किया है। हृदय से उनकी कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं।

   उल्लेखनीय है (21 दिसम्बर 1705 से 27 दिसंबर 1705 ) के बीच दशमेश पिता गुरुगोबिंद सिंह जी महाराज के चारों पुत्रों एक पुत्री, साहिबजादा अजीत सिंह जी (17 ) साहिबजादा जुझार सिंह जी ( 14) चमकौर की जंग में तथा साहिबजादा  जोरावर सिंह जी (11) साहिबजादा फतेह सिंह जी ( 7 ) को सरहिंद में जिंदा दीवार में चिनवा कर शहीद किया गया । एक मात्र गुरु-पुत्री बीबी हरिशरण कौर जी (14 ) ने गुरु-पुत्रों व चालिस गुरु-सिक्खों का अंतिम संस्कार करते समय (चमकौर रण भूमि में ) अप्रतिम अकल्पनीय शहादत पाई। बेनज़ीर फरजंदों का यह राष्ट्र ऋणी है।

 यशश्वी मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ जी महाराज को इस सम्मान व सत्कार के लिए नमन व वंदन।

उदय वीर सिंह।

सोमवार, 27 दिसंबर 2021

स्वयं प्रथम वलिदान करो....




...✍️

हार , विजय  - पथ  देती  है,
बीता  अतीत   संज्ञान  करो।
उपदेश   नहीं   संकल्प  वरो,
स्वयं  प्रथम  वलिदान  करो ।
देश, धर्म  का ध्वज ऊंचा हो,
गुरु सिक्खी पर अभिमान करो।
उदय वीर सिंह।

रविवार, 26 दिसंबर 2021

शहादते पीरां...



🙏
शहादते पीरां 

( 27 दिसंबर 1705 )

फरजन्दों की शहादत पर अश्रुपूरित विनम्र श्रद्धांजलि...।

अमर शहादत बाबा जोरावर सिंहजी 7- वर्ष 11-माह और बाबा फतेह सिंह जी 5-वर्ष 11-माह की।

स्थान - सरहिंद (आज का फतेह गढ़ साहिब)

दौर- मुगलिया सल्तनत (औरंगजेब)

अमर वलिदानी माजी के पन्नों से -

" मौत रोई जगत रोया ,धरती रोई गगन रोया "

1-बाबा जोरावर सिंह जी 

जन्म [28 Nov 1695 आनंदपुर साहिब 

शहादत 27 Dec 1705 सरहिंद ] 

2- बाबा फतेह सिंह जी

जन्म  [ 22 Dec 1699 आनंदपुर साहिब

शहादत ( 27Dec 1705 सरहिंद )

संक्षिप विवरण-

माता जी - गुरुमाता सुंदरी जी।

दादी माँ - गुजर कौर जी 

पिता - गुरु गोबिन्द सिंह जी

दादा जी- गुरु तेग बहादुर जी महाराज। 

गुनाह - 

धर्म से सिक्ख होना,

देशभक्ति ,कौम का वफादार सिपाही होना अपने संस्कारों पर अडिग रहना , इस्लाम स्वीकार नहीं करना । मां- पिता के संस्कारों ( सिक्खी) मूल्यों की अंतिम स्वांस तक रक्षा करना । 

सजा - 

मृत्यु-दंड  (जिंदा दीवार में चुनवा कर )

संकल्प - धर्म की फतहि

संदेश - वाहेगुरु जी दा खालसा वाहे गुरु जी दी फतेह।

आदर्श - गुरु गोबिन्द सिंह जी 

पहचान -पंच ककार 

सूत्र वाक्य - देहि शिवा वर मोहे है शुभ कर्मन ते कबहुँ न डरो ..।

कर्म - धर्म की स्थापना ,ज़ोर जुल्म का प्रतिकार।

- विश्व के सबसे कम उम्र के वलिदानी जिनका सूबा सरहिंद की अदालत में मुकदमा चला जिसमें अपनी वकालत वे स्वयं कर रहे थे।

- दादी माँ ( गूजर कौर जी )के पावन सानिध्य में रह अपने संस्कारों दायित्वों और खाई कसमों को सहर्ष प्राण देकर निभाया । यह अजूबा शौर्य  पूरी दुनियां के इतिहास में कहीं नहीं मिलता ।

    पौष की रात ( दिसम्बर 20/12/1705)गुरु-परिवार सिरसा नदी तट से धर्म रक्षार्थ खेरू - खेरू हो गया । माँ ,पिता , पुत्र,भाई  घर सगे संबंधियों से आततायी मुगल सल्तनत व पहाड़ी हिन्दू राजाओं के चौतरफा हमले के कारण,गुरु -पारिवार का एक दूसरे से बिछोड़ा हो गया ।

   नदी सिरसा तट से दशम पातशाह गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज अपने दो बड़े पुत्रों बाबा भाई अजित सिंह ,बाबा जुझार सिंह जी व चालीस गुरु सिक्खों सहित चमकौर सहिब की कच्छी गढ़ी की ओर गए। जहां 22/12/1705 को अकल्पनीय अदम्य शौर्य के देवों ने चमकौर की जंग में युग-बोधक शहीदी पाई। सद्गुरु दशमेश पिता शांत अविचलित हो धर्म के  अग्नि कुंड में अपने लालों की समिधा दे रहे थे । युग समय स्तब्ध था ,जुल्म ही नहीं सितमगर भी आवाक खौफ़जदा थे। साक्ष्य स्वरूप उस स्थान पर गुरुद्वारा चमकौर साहिब आज विराजमान हैं।

  माता गुजरी जी अपने दो पोतों बाबा जोरावर सिंह उम्र छह साल और बाबा फतेह सिंह उम्र नौ साल को  साथ लेकर गुरु-घर के रसोईया पंडित गंगू के पहल पर इन अद्द्भुत अप्रतिम फरजदों के साथ कोतवाली मोरिंडा स्थित उंसके घर को चलीं,जहां गद्दार गंगू ने धन और ईनाम,पद के लोभ में माता जी व गुरु पुत्रों को अगली सुबह माता जी की दी अमानत को हड़प वजीर खान की गारद से दादी समेत दोनों पोतों को गिरफ्तार करवा दिया। गुरु परिवार व गुरु सिक्खों पर मुगलिया सल्तनत ने करोड़ों के इनाम रखे थे।

   अकथनीय यातना अंतहीन पीड़ा मानसिक संत्रासों के बावजूद बेनजीर फरजर्दों ने इस्लाम कुबूल नहीं किया।  वज़ीर खां ने इन गुरुपुत्रों को जिंदा दीवार में चिनवाने का हुक्म दिया। दिसम्बर 26/12/1705 को इन्हें दीवार में जिंदा चिनवा दिया गया।

   इस पावन स्थल पर आज गुरुद्वारा फतेहगढ़ साहिब साक्ष्य स्वरूप विराजमान हैं।

   यह मर्मान्तक सूचना पाकर ठंढे सर्द 140 फ़ीट ऊंचे बुर्ज में कैद दादी माँ ने अपने प्राण त्याग इह लोक से चलाना कर गए।

  अमर वलिदानियों ने अपने देश धर्म वचन कर्तव्य संस्कार मूल्यों के रक्षार्थ अपने प्राणों की आहुति दे दी ,परंतु पथ से विचलित नहीं हुए धर्म ध्वज अटल अडोल रहा।

    न झुका सके जालिम औरंगजेब का फरमान, 

न ही सरहिंद का सूबेदार नवाब वजीर खान की अदालत न गद्दार गंगू पंडित की शिनाख्त ,न ही सुच्चा नन्द की गवाही व मौत की सिफारिस,न ही काजी का फतवा ,न ही सुख ऐश्वर्य,न जीवन का लोभ ही । 

गर्व है हम उनके वारिस हैं ।

उदय वीर सिंह ।

बुधवार, 22 दिसंबर 2021

पतझड़ भी छुपकर रोता है


 






जब माली ही झंखाड़ों को जमने की इजाज़त देता है।

सिर्फ मधुवन ही नहीं रोता, पतझड़ भी छुपकर रोता है।

बाली धान और गेहूं की,गुल गुलाब गुम जाते हैं,

फसल अफ़ीम की लहराती जब बीज ज़हर का बोता है।

मौसम तो दस्तक देते हैंअपने आने की और जाने की,

बर्बादी ही मिलती है जब माली राजमहल में सोता है।

उदय वीर सिंह।

शनिवार, 18 दिसंबर 2021

फूल किसी पर फल देखा है.....


 






....✍️

हर साख दरख़्त ने ही संवारी है, 

फूल तो किसी पर फल देखा है।

सौंदर्य का माधुर्य कहीं कम नहीं ,

कहीं गुलाब तो कहीं कमल देखा है।

देखा अम्बर से जमीं पर उतारे ख्वाब,

आज तो किसी ने कल देखा है।

संगमरमरी महल का खुदगर्ज होना, 

झोंपड़ी की आंखों को सजल देखा है।

कम न हई किसी की खूनी प्यास,

किसी को पीते हुए गरल देखा है।

सहरा में छलकता स्वच्छ शीतल नीर,

ऊपर घास नीचे दलदल देखा है।

उदय वीर सिंह।

गुरुवार, 16 दिसंबर 2021

रास्ता आसान हुआ करे....

 







🙏नमस्कार मित्रों!

कागज़ों में जान हुआ करे।

कि सच सरेआम हुआ करे।

पत्थर बनें तो मील का बनें,

कि रास्ता आसान हुआ करे।

बेसहारा न हो कोई जहां में,

सहारा सबके नाम हुआ करे।

कर्म मूल्यों का मानदंड बने,

पथ का प्रतिमान हुआ करे।

भूमि बन जाये वलिदान वरें,

सबका तीरथ धाम हुआ करे।

सुख सदा नहीं रह सकता तो

दुख भी मेहमान हुआ करे।

चाहता है दिल सबकी ख़ैर

सबका मान सम्मान हुआ करे।

उदय वीर सिंह।

रविवार, 12 दिसंबर 2021

....सरदार भाई जी ,✍️








 ........सरदार भाई जी.✍️

ढूंढ लेते नफरत में भी,प्यार भाई जी।

बखरा है सरदारों का ,संसार भाई जी।

मीरी और पीरी का , संस्कार आला है,

मन नीवां मति ऊंची का व्यापार भाई जी।

दिल सागर साहस पर्वत सा मान ऊंचा है,

हर मानुष का गुरु-घर में सत्कार भाई जी।

हकपसन्द वलिदानी हैं गुरुवाणी की ओट,

वचन निभाते देकर शीश सरदार भाई जी।

पहुंचा लेकर तन मन धन दर्द सदा कीआई,

गर्दिश में होकर न होआ गद्दार भाई जी।

उदय वीर सिंह।

रविवार, 5 दिसंबर 2021

मत रखो....




 

....✍️

नफ़रतों के लिए जगह मत रखो।

जिंदगी के लिए वज़ह मत रखो।

धूप कभी छांव का आना जाना है,

सिर्फ अपने लिए सुबह मत रखो।

अगर तेरी हार से अमन आता है,

तो बर्बादियों पर फ़तह मत रखो।

वतन है तो हमारी आवाज़ भी है,

किसी को दलदली सतह मत रखो।

उदय वीर सिंह।

शनिवार, 4 दिसंबर 2021

आघातों से समझौता क्यों?








🙏

बिखर गया तो फिर संवरेगा 

आघातों से समझौता क्यों?

दस्तक है पतझड़ की आज

नैराश्य बसंत से होता क्यों?

टूटी है कारा यामा की वीर

धन साहस का खोता क्यों?

मन मानस में प्रीत भरो जी

वैर का विरवा बोता क्यों?

सत्य सदा संबल बनता है,

बोझ असत्य का ढोता क्यों?

हंसने के भी दिन आते हैं,

वेदन में फिर रोता है क्यों?

उदय वीर सिंह।

रविवार, 28 नवंबर 2021

नयन जागते रहे....


 








अजनवियों कीभीड़अपना तलाशता रहा।

नयन जागते रहे सपना तलाशता रहा।

पहचान कर सब ले गए अपनीअमानतें

मेरी कहाँ बचीं हर कोना तलाशता रहा।

बोई उम्मीद की फसल बरसात ले गई,

वायदों की थाली, दाना तलाशता रहा।

मुख़्तलिफ़ किताबों के पन्ने पलट गया,

जाती ज़िंदगीका अफ़साना तलाशता रहा।

उदय वीर सिंह।

गुरुवार, 25 नवंबर 2021










जब अर्थ समझ में आया,

वो गीत हृदय से विसर गया।

वेदन को अश्लील कहे,

वो दृश्य नयन से उतर गया।

पत्थर तब तक,पत्थर था,

प्रीत मिली तो बिखर गया।

संवेदन को जो पंख मिला,

भाव हृदय भर शिखर गया।

महलों में थी ताप-तपिश कटु,

तरु छांव मुसाफ़िर ठहर गया।

भय गुलाब को छू न सका,

कांटों में भी निखर गया।

उदय वीर सिंह।

मंगलवार, 23 नवंबर 2021

दिल में लिखी है अजमत....









 .......✍️

छीना नहीं बख्सा है रब ने स्वीकार करते हैं।

रब का नूर आला है वो सबसे प्यार करते हैं।

रोक देती है चलने से पहले शमशीर खुद को,

जब हकपसंदों पर जबर ज़ालिम वार करते हैं।

दूध और खून की रोटी बयां करती हैं फ़ासले,

बेचते नहीं बचाकर वतन पर निसार करते हैं।

कपड़ों पर नहीं दिल में लिखी है अज़मत,

मकबूलियत है सच्चे सौदेका व्यापार करते हैं।

उदय वीर सिंह।

सोमवार, 22 नवंबर 2021

परिन्दा एक पूरा शज़र चाहता है...









 ...........✍️

शज़र है कि सारा शहर चाहता है।

परिन्दा एक सारा शज़र चाहता है।

साथ हैं जश्न है ,फ़ासले अलविदा,

सफ़र एक सदा हमसफ़र चाहता है।

आईने की हिफाज़त जरूरी समझ,

संगभी अपने भीतर ज़िगर चाहता है।

बरसा बादल बहा नीर सागर चला,

बुलबुला भी एक लंबी उमर चाहता है।

रास्ते हैं, बहुत से मुसाफ़िर भी हैं,

एक बे-नैन वाला नज़र चाहता है।

उदय वीर सिंह।

मंगलवार, 9 नवंबर 2021

दहशत भरी ख़ामोशी


 








दहशतभरी ख़ामोशी समाधान नहीं होती।

काया से लिपटी लंगोटी परिधान नहीं होती।

मुसाफ़िर हैं हम ठहर जाते हैं नमी पाकर,

किसी दरख़्त की छाया, मकान नहीं होती।

पैगाम देते हैं टूटे कांच व पत्थरों से भरे कूँचे,

दीन की बे-अदबी दीन की शान नहीं होती।

अख़लाक़ है कि हम मिटते हैं इंसाफ पर,

वायदाफ़रोशों की कोई जबान नहीं होती।

हर जमीं-जर्रों में हिन्दुतान की महक है, 

ये मां है सबकी है किसीके नाम नहीं होती।

उदय वीर सिंह।

शुक्रवार, 5 नवंबर 2021

तम न रहे...









 🙏

तम न रहे, दिल में ग़म न रहे।

प्रीत के गांव में प्रीत कम न रहे।

हर दर्द की है सदा एक सी,

सिर्फ़ उलफ़त रहे जी सितम न रहे।

छोड़ आएं अंधेरों को गह्वर किसी,

दिल हर्षित रहे आंख नम न रहे।

उदय वीर सिंह।

गुरुवार, 4 नवंबर 2021


 







बंदी छोड़ दिवस( 52 कैदी हिन्दू राजाओं की मुक्ति )व ज्योति पर्व की लख-लख बधाई मित्रों।

मुकद्दर में सबके उजाला रहे।

मस्जिद किसी को शिवाला रहे।

कपड़ा और घर की कमीं न रहे,

सबकी थाली मयस्सर निवाला रहे।

घर आंगन में दीपक मुक़द्दस रहे

हिफ़ाजत में दामन का साया रहे।

उदय वीर सिंह।

सोमवार, 1 नवंबर 2021

अपनी छुपाता बहुत है।


 





होकर अपनी साज़िश में कामयाब 

मुस्कराता बहुत है।

लगे जिसपर अनेकों दाग उंगलियां 

उठाता बहुत है।

परहेज है जिसे सच बोलने से वो 

कसमें खाता बहुत है।

चाहता है सुनना सबकी बातें मगर 

अपनी छुपाता बहुत है।

जलता है गैरों की बुलंदियों से 

इंतकाम में जलाता बहुत है।

पसंद नहीं जो जमाने को राग 

उनको गाता बहुत है।

मालुम है सबको जो मुमकिन नहीं

वो ख़्वाब दिखाता बहुत है।

वजूद ही नहीं माज़ी में जिस दास्ताँ का,

उन्हें सुनाता बहुत है।

उदय वीर सिंह।

रविवार, 24 अक्तूबर 2021

भरोषा टूटता चला गया,....









 ........,,✍️

भरोषा था अपनों पर,

टूटता चला गया।

आयी गर्दिशी तो हाथ,

छूटता चला गया।

मुखबिरी अपनों ने क़ी,

गैर लूटता चला गया।

कच्चा घड़ा था वो नेह,

बूंद पड़ी गलता चला गया।

न बहा गर्दिशी के दौर,

आज बहता चला गया।

पीर में कोई बुलबुला था वीर,

फूटता चला गया।

उदय वीर सिंह।

सोमवार, 18 अक्तूबर 2021

मसीहाई जुबान का शहजादा...


 






मसीहाई जुबान का शहजादा...

बहुत गुरुर था सल्तनत का उसे जमाना  निगल गया।

ली थी शराफत की जिम्मेदारी दीवाना निकल गया।

मालूम है कैफ़ियत जहां वालों को फिर भी दाद देते हैं,

सच मान लिया था जिसको वो फ़साना निकल गया।

सिजदे में रहा ता-उम्र भरोषा था उसकी दरो दीवार का,

गया था इंसाफ-घर समझ वो मयख़ाना निकल गया।

मसीहाई जुबान का शहजादा दे सपनों की सल्तनत,

फिर लौट कर नहीं आया, जमाना निकल गया

उदय वीर सिंह।

गुरुवार, 14 अक्तूबर 2021

दिल की कही ,आदमी की कही...













मैंने दिल की कही,जिंदगी की कही।

सादगी की कही ,आदमी की कही।

आशियाना सितारों में  मांगा नहीं,

मैं जमीं का रहा हूँ जमीं की कही।

वास्ता जिनको था वो महल के हुए,

हमने मजलूम की बेकसी की कही।

मेरी आँखों ने चश्मों से देखा नहीं,

हमने देखा कमीं तो कमीं की कही।

दर्द क्या है शराफ़त का कैसे कहें,

अबआंखों से गायब नमीं की कही।

अंगारों में फूलों को देखा जले 

उठी जो कलम दरिंदगी की कही।

उदय वीर सिंह।

बुधवार, 13 अक्तूबर 2021

हमने लिखे तुमने लिखे....









 

हमने लिखे,तुमने लिखे, 

पढ़ने का जमाना चला गया।

हमने कहे,तुमने कहे,

सुनने का जमाना चला गया।

रिश्ते अजनवी हो गए,

मिलने का जमाना चला गया।

दर्द सहके मुस्कराकर,

मिलने का जमाना चला गया।

दिल हुये अब पत्थरों से,

पिघलने का जमाना चला गया।

दर बेकसों के दीप एक,

रखने का जमाना चला गया।

दो बोल मीठे सिर अदब में,

झुकने का जमाना चला गया।

उदय वीर सिंह।

मंगलवार, 12 अक्तूबर 2021

पुरस्कारों में रह गए...









......पुरस्कारों में रह गए✍️

गुल और गुलसितां के किरदारों में रह गए।

शायर ईश्क और मुश्क के दयारों में रह गए।

रोती रही इंसानियत दर-बदर कूँचे दर कूँचे

बने थे चमन के माली दरबारों में रह गए।

मंदिरो मस्जिद की आग आशियाने जल गए,

पैरोकारी थीआवाम की पुरस्कारों में रह गए।

आबाद गुलशन ही परजीवियों को भाता है,

गद्दार तख़्तों पर फरजंद दीवारों में रह गये।

पाकीज़ा शहर में नापाक मंडियों के मजरे,

दे खून पसीना श्रमवीर कर्ज़दारों में रह गए।

उदय वीर सिंह।

रविवार, 10 अक्तूबर 2021

निवाले की सोचिए


 







सूरज ढलने से पहले घर में उजाले की सोचिए।

मंदिर और मस्जिद से पहले निवाले की सोचिए।

आंधियों,तूफान से किसी का रिश्ता नहीं होता,

मकान में जिंदगी है पुख्ता रखवाले की सोचिए।

मरहम देकर इश्तिहार नहीं देता कोई हमदर्द

दिए ज़हर से भरे लबालब पियाले की सोचिए।

उदय वीर सिंह।

शनिवार, 2 अक्तूबर 2021

शांति के पर्याय बापू...


 







..शांति के पर्याय बापू✍️

दुनियां पढ़ती है दर्शन को सत्कार करती है।

दुनियां गोड्से नहीं गांधी को प्यार करती है।

असमानता व खाईं का निषेध स्वीकृत हो,

दुनियां उन्माद नहीं शांति पर ऐतबार करती है।

गुलामी कहीं भी किसी की स्वीकार्य नहीं,

अब दफ़्न हो जाए ये रीत शर्मसार करती है।

उदय वीर सिंह।

बुधवार, 29 सितंबर 2021

पतवार बिक गए तो...







क्या होगा उन बेड़ों का पतवार बिक गए तो।

मनसबदार कहाँ जायेंगे दरबार बिक गए तो।

घड़ियालों के नयनों से बहते रहे निरन्तर 

उनअश्कों का क्या होगा ऐतबार बिक गए तो।

प्यार की भाषा परिभाषा मौजों सी जो होगी,

रहबरी का क्या होगा जब यार बिक गए तो।

सत्य निष्ठा अनुराग सबल राह फतह की देते हैं,

क्या होगा रणभूमि का खुद्दार बिक गए तो।

उदय वीर सिंह।




शनिवार, 25 सितंबर 2021

बादशाह मौत का डर देता है...


 








........✍️

न पूछता है तूफान किसी की खैरियत

न आसमान घर देता है।

सल्तनत देती है बेदखली का,

 बादशाह मौत का डर देता है।

झुका सकते हैं जो आसमां को ,

उन परिंदों को पर नहीं,

गैरों की अस्मत का है जिन्हें ख़्याल,

दौर मुर्दों का शहर देता है।

समंदर किसी की परवाह करे 

 नहीं मिलती कोई मिसाल,

बरसती आग सहरा में मुसाफ़िर को,

कौन शज़र देता है।

उदय वीर सिंह ।

रविवार, 19 सितंबर 2021

ठहरे हुए हैं लोग....


 








🙏🏼नमस्कार मित्रों!

आंधियां तौहीद की बिखरने लगे हैं लोग।

दी वस्ल कीआवाज बिछड़ने लगे हैं लोग।

मोहब्बत के खानसामे ताज़िर से हो गए,

बसने लगी है आग,उजड़ने लगे हैं लोग।

शहर के शहर हैं गहरी ख़ामोशियों की जद,

दहशतज़दा हैं गांव,सहमे हुए हैं लोग।

मसर्रत की इतनी बारिस पैमाल जिंदगी है,

नामंजूर इतनी खुशियां मरने लगे हैं लोग।

किसको पता है मंजिलआपस में पूछते हैं,

जाए किधर को काफ़िला ठहरे हुएहैं लोग।

उदय वीर सिंह।

मंगलवार, 14 सितंबर 2021

औजार बनाने को कहिये...








.हिंदी पखवाड़ा..✍️

हथियार बनाने वालों से औजार बनाने को कहिए।

दीवार उठाने वालों से शुभ-द्वार बनाने को कहिये।

आकाश मित्रवत तब तक है जब तक ऊर्जा पंखों में,

एक नीड़ धरा ही दे सकती आधार बनाने को कहिये।

प्राण प्रतिष्ठा मानवता की मन-मानस करनी होगी,

रचनाकारी हाथों से संस्कार रचाने को कहिये ।

पत्थर और फूलों की अपनी- अपनी दुनियां है,

घर भी बने उपवन भी बसे गुलज़ार बनाने को कहिये।

अन्याय भेद षडयंत्रों से रक्तपात ही उपजा है,

जीवन जलता आग घृणा की प्यार बसाने को कहिये।

भष्मित कर देता उन्माद इतिहास जगत का कहता है,

पहले शीश झुके अपना फिर शीश झुकाने को कहिये।

उदय वीर सिंह।

शुक्रवार, 10 सितंबर 2021

करीब न होंगे..

 





बोल कर प्यार के दो बोल

कभी गरीब न होगे।
किसी की गर्दिशी में साथ दे
बद्दनसीब न होगे।
दो कदम जनाजे के साथ
ताजिर नहीं जाते,
लगाकर हबीब की पट्टियां
कभी हबीब न होंगे।
हमदर्दी की नुमाईश नहीं
करते कभी नेकदिल,
रख कर फासले दिल में
कभी क़रीब न होंगे।
उदय वीर।

रविवार, 5 सितंबर 2021

शिक्षक दिवस








🙏🏼शिक्षक दिवस की अनन्य बधाई व शुभकामनाएँ..

जाग्रत हो उठता जातक 

शिक्षा की प्राण प्रतिष्ठा पा

शिक्षक तेरा शत शत वंद

अस्त्र शस्त्र शिक्षा का पा।

रण में वन में मरु गगन में

रक्षित ज्ञान सुरक्षा का पा। 

संस्कार पुष्पित होते गुरु

तेरी पीत अभिरक्षा का पा।

उदय वीर सिंह।

मंगलवार, 31 अगस्त 2021

आ जाओ अब हे केशव..


 





आ जाओ अब हे केशव!

हे मोहन तेरी अकथ प्रतीक्षा

पांडव भी राह भुला बैठे।

कौरव राह लगी सुंदरतम

मारग शांति जला बैठे।

कौरव तो कौरव क्या कहने

युद्ध अशांति ही भाते हैं,

हे केशव सत्ता तीरथ सी

पांडव भी कीच नहा बैठे।

छद्म वेश में आवृत कौन?

ये तुम जानो तुम ज्ञानी हो,

पहचान हुई अब मुश्किल में

जन दोनों लोक गंवा बैठे।

आ जाओ अति देर हुई

ना जाने कित ओर कहाँ बैठे।

उदय वीर सिंह।

सोमवार, 30 अगस्त 2021

" देश की मिट्टी "

   






जहाँ तक मुझे आद आता है मैं पांचवीं कक्षा का छात्र था,सन 1971 की जंग को करीब चार साल बीते हो गए थे । पाकिस्तान के द्वारा थोपी दो जंग भारत देख चूका था जंग में भारत ने पाकिस्तान को करारी शिकश्त ही नहीं दी बलिक पाकिस्तानी सेना को बड़ी लज्जित अवस्था में भारतीय सेना के समक्ष, आत्म- समर्पण करने को मजबूर कर दिया था । भारत की मुक्तिवाहिनी सेना ने पूर्वी पाकिस्तान [वर्तमान बंगलादेश] को आजाद करा कर एक नए स्वतंत्र देश बांग्लादेश का निर्माण करा उनको पशिमी पाकिस्तान [ वर्तमान पाकिस्तान ] की दासता से मुक्त करा दिया ,जो भारत की कूटनीतिक राजनीतिक व सामरिक नीतिओं का स्वर्णिम अध्याय साबित हुआ।

भारतीय जनमानस में पाकिस्तान की पाशविक अमानविय क्रूरता व विस्वासघात के प्रति घोर आक्रोश व्याप्त था। तत्कालीन साहित्य अखबार व लोकगीत पाकिस्तानी आचरण के विरुद्ध भरे पड़े हैं। स्वाभाविक भी था ।
मेरे विद्यालय में वार्षिक खेल कूद व उसके इतर कार्यक्रम बड़े उतसाह से प्रतिवर्ष संपन्न होते थे जो अन्तर्विद्यालयी प्रतियोगिता में श्रेष्ठता के आधार पर प्रतिभागी हो पुरस्कृत होते। इस निमित्त इस वर्ष भी दो माह पूर्व अगस्त माह से ही छात्रों को उनकी अभिरुचि के अनुसार चयन कर प्रतिभागी कार्यक्रमों हेतु योग्य प्रशिक्षकों के निर्देशन में अभ्यास आरम्भ हो गया था।
मेरी अभिरुचि खेलों के साथ काव्य व संगीत में भी थी सो इस हेतु मेरा चयन आरम्भ में ही हो गया। इस दिशा में प्रशिक्षकों के निर्देशन में अपनी जिम्मेदारियों को बड़ी तन्मयता से निर्वहन करने का प्रयास कर रहा था । असफलता स्वयं को ही नहीं विद्यालय की प्रतिष्ठा को भी रेखांकित करती। शिक्षकों,प्रशिक्षकों का मेरे ऊपर विस्वास था,शायद इसी कारण खेल,ममोमा,स्पोर्ट,वाद-विवाद, प्रतियोगिता के साथ संगीत में भी मेरी सक्रिय भागीदारी थी। जिसका मैं बखूबी अभ्यास के दौरान प्रशंसनीय प्रदर्शन भी कर रहा था। कार्यक्रम समन्वयक, शिक्षकों का स्नेह मिल रहा था। इस
सांस्कृतिक कार्यक्रम में एक नाटक जिसका शीर्षक " देश की मिटटी " का भी मंचन होना था,पात्रों के चयनोपरांत मंचित होनेवाले नाटक का विद्यालय के संगीत हाल में अभ्यास चल रहा था।
मैं अपने अभ्यास के उपरांत अन्य कार्यक्रम के अन्य प्रतिभागियों के अभ्यास प्रदर्शन को देख आनंदित होता।
संगीत कक्ष में मंच पर नाटक का अभ्यास चल रहा था, मैं इसे देख रोमांचित होता सोचता -
काश मैं भी इस नाटक का हिस्सा होता। मेरा विस्वास था कि मैं इसे कर सकता हूँ। समस्या थी चयन की,और मैं कई अन्य कार्यक्रम में प्रतिभागी भी था। फिर भी आत्मविश्वास था मुझको। मंचित हो रहे नाटक में मेरा एक सहपाठी कश्मीरी मुसलमान परिवार के बुजुर्ग मुखिया रसूल खानके किरदार में था। जिसका वह बखूबी निर्वहन नहीं कर पा रहा था,कभी वाद-संवाद की कमी कहीं भाव भंगिमा की,कभी भाषा की समस्या उसके सामने आ जाती। शिक्षक,प्रशिक्षक चिंतित थे। नाटक का वह सबसे मजबूत किरदार था, जिसे मजबूती से निभाना आवश्यक था।
मैं पीछे बेंच से उठा और बिना किसी परिणाम को सोचे बोल पड़ा -
सर ! मैं इसे कर सकता हूँ । करके दिखाऊँ ?
प्रशिक्षक एक पल ठहरे फिर ऊपर आने का ईशारा किया।
मैंने उनके कहेनुसार संवाद व भाव भंगिमा सहित किरदार को जीया। तालियां बजे लगी थीं। शायद मैं रसूल खान के किरदार के लिए उपयुक्त था। प्रशिक्षक ने कहा -
इस किरदार को अब तुम निभाओगे। मैंने सहमति में अपना सिर हिलाया।
मुझे आत्मिक खुशी मिली जिसे मैं चाहता था ।
   प्रधानाचार्य जी का आशीष भरा हाथ मेरे सिर पर था। बोले-
   उदय ! तुम्हारे ऊपर बड़ी जिमेदारी है। कई कार्यक्रमों का दायित्व है तुम्हारे ऊपर । विस्वास कायम रखना । मुझे भरोषा है विस्वास खंडित नहीं होगा। विद्यालय की प्रतिष्ठा में कमीं नहीं आएगी। मेरा विद्यालय सदा की भांति इस वर्ष भी अग्रणी रहेगा।
मैं मौन नतमस्तक था ।
देश की मिट्टी में कश्मीरी मुसलमान परिवार के बुजुर्ग मुखिया रसूल खान का एक महत्वपूर्ण किरदार है । पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसियां व उनके द्वारा पोषित अलगाववादी स्थानीय कश्मीरी मुसलमानों को धार्मिक सामाजिक आर्थिक प्रलोभन ही नहीं आतंकित भी करके भारतीय गणतंत्र के विरुद्ध साज़िश में शामिल होने को मजबूर कर रहे थे। उनसे बल पूर्वक शरण व सहयोग की मांग करते थे। इनकार में इज्जत आबरू जान माल से खेलते। स्थानीय युवकों को वगावत के लिए हर तरह के हथकंडे अपना कर जिहाद व इस्लाम के नाम पर उकसाते अपने जाल में फ़ांसते और शोषण करते।
रसूल खान का इकलौता बेटा बिस्मिलाह खान आतंकवादियों की साज़िश का शिकार हो गया। भारत के विरुद्ध पाकिस्तानी एजेंसियों आतंकियों के साथ मिल गया। लालच व दबाव में अपने घर उनको पनाह देने व उनकी मदद के लिए पिता रसूल खान पर दबाव बनाने लगा। पिता रसूल खान ने बेटे को फटकार लगाई,एक वतनपरस्त पिता ने दो टूक जवाब दिया।
" मुझे अपने वतन से बे-पनाह मोहब्बत है। इस देश की मिट्टी से प्यार है "
" क्या समझते हो मैं इस बुढापे में अपनी सफेद दाढ़ी में स्याही लगवा लूंगा ?"
हरगिज़ नहीं।
वहीं छिपे एक आतंकी की गोली का पिता रसूल खान निशाना बन शहादत को प्राप्त करते हैं । बेटा विस्मिल्लाह खान मृत पिता को देख आतंकियों का प्रतिरोध करता है, वह भी आतंकियों की गोली का शिकार हो जाता है।
रसूल खान ने जीते जी अपनी सफेद दाढ़ी में स्याही नहीं लगने दिया।
इस नाट्य मंचन ने विद्यालय को सम्मान दिलाया, मुझे भी विद्यालय ने सम्मानित किया। विद्यालयी दिनों को सोच कर मन आज भी रोमांचित हो उठता है।
उदय वीर सिंह।
***













सहरा पियासा तरसता रहा.....


 





.......✍️

जा के झीलों में बदरा बरसता रहा।

जलता सहरा पियासा तरसता रहा।

दर्द था मर्ज़ का,बोझ था कर्ज़ का,

टूट मनके से मोती बिखरता रहा।

रातभीअजनवी दिन तो पहले से था,

अश्क़ ढ़लते रहे दिल सिसकता रहा।

भूख से आज रुख़सत एक दुनियां हुई,

काफ़िला जश्न का कल गुजरता रहा।

आज पैग़ाम आया कि वो दर बंद है, 

जिस मंजिल की हसरत ले चलता रहा।

उदय वीर सिंह।

शनिवार, 21 अगस्त 2021

अव्यक्त

 उसका आगे बढ़ना  था की लोग पीछे हटते चले गए ,किसी में इतना साहस नहीं था की उस निहत्थे कृशकाय को रोक सके / अपनी शांत निर्बाध धीमी गति से गतिमान चलता रहा उसका ध्यान किसी की भी  तरफ नहीं मौन निर्विकार निस्तेज भाव से अपने अज्ञात अनिश्चित गंतव्य की ओर अग्रसर था ,लोगों के उससे दूर होने डरने या भयभीत होने का उसने कोई कारन किसी से नहीं पूछा / न ही शायद उसने जरुरत ही समझी हो , ना ही  भीड़ या तमाशायियों में  से किसी ने उससे पूछने की कोशिश की हो/  लोग उसे घबरायी आतंकित निगाहों से देख सुरक्षित रास्ता गली तलाश कर उससे दूर हो उस कौतुहल बने अशक्त मानव से अपनी मौन असंवेदनशील जिज्ञाषा भी साधे हुए थे / अन्यथा वो अपने आवास  या सुरक्षित जगहों को जा चुके होते / 

     शाम का धुंधलका घना होने लगा बड़ी चौड़े राजमार्ग से वह जातक उतर एक कम चौड़े मार्ग पर बेसुध चल रहा था,कोई उसके समीप न जा अपना रास्ता बदल उसे अपनी जिज्ञाशाओं का कमतर विषय समझ अपने नियोजित समय को महत्वपूर्ण स्थान दे चला जा रहा था / सबको अपनी फिक्र थी अपने पाल्यों ,परिजनों हितैषियों कुटुंब मित्रों की यह मान कि यह जीवन उनके ही निमित्त है / किसी अजनवी या अन्य निमित्त नहीं/ 

     उस संकरी गली में सामने से आते हुए  दरम्यानी सिंग विशालकाय शरीरधारी सांड का सामना दुर्बल वीमार से हुआ / जातक अपने रस्ते बेफिक्र निर्विकार सिर झुकाए  चलता जा रहा था ,शायद सांड को लगा ये मेरा प्रतिद्वंदी है / सांड ने बिना देर किये अपनी सींगों से भरपूर पुरुषार्थ दिखाते हुए ऊपर उछाल दिया ,जातक की कोई प्रतिक्रिया नहीं थी ,मकान के दीवार से टकराया और जमीन पर  गिर निस्तेज हो गया था / उसके मैले फाटे झोले से कुछ दवा की गोलिया तथा सूखे ब्रेड के कुछ तुकडे बहार बिखर गए ,जिन्हें सांड ने सुंघा और बिना खाए आगे हुंकारते हुए चला गया /

       भीड़ के कुछ लोग  आगे आये थे पर वापस चले गए , सुना  शायद किसी ने पुलिस को इत्तिला किया है ,रात होने को है कल सुबह होगी देखा  जाएगा / जिसका जो कार्य होगा करेगा ,फिलहाल अभी वक्त विलंबित है /

उदय वीर सिंह 

   

सफाई तो बनती है ...






औरों के दर्द के हमदर्द हुए बधाई तो बनती है।
लगे दामन के दाग की भी सफाई तो बनती है।
कातिल को सज़ा मुक़र्रर हो ये इंसाफ होगा।
लगेआप पर इल्जामों की सुनवाई तो बनती है।
तकलीफ़ हुई किसी के घरों में हुई अनबन से,
जो सदियों से बंद बाड़ों में रिहाई तो बनती है।
शहनाईयों का क्या खुशी, मातम में भी बजती हैं
इंसाफ अधूरा है,कलम में रोशनाई तो बनती है।
उदय वीर सिंह। 

शुक्रवार, 20 अगस्त 2021

पसीने की आयतों में हैं....


 





चाय की सियासत नहीं,ये  रोटी की हिमायतों में हैं।

बख्तरबंद-गाड़ी,महलों में नहीं पसीनेकीआयतों में हैं।

मुत्तासिर हैं सिर्फ़ कागज़ों में तंजीमों के अक्लमंद,

ये आज भी मुंतजिर किसी हुक्काम की इनायतों के हैं।

शर्मिन्दा भला कौन होगा इनकी बेबसी गुरबती पर,

भूख से भूख तक का नसीब इनकी रिवायतों में है।

उदय वीर सिंह।

बुधवार, 18 अगस्त 2021

...बामियान होने में..✍️


 









संस्कृतियों के हजारों साल  लगे,उन्हें महान होने में।

दिन के दो-चार लगे बेबसी काअफग़ानिस्तान होने में।

जिस जमीं पर इंसानियत के गुलजार थे सोणे चमन,

बारूदों को अच्छा नहीं लगा बुद्ध का बामियान होने में।

जिन आंखों ने मांगी जिंदगी व सलामती सबकी,

दर-बदर ठोकरों में देख शर्म आती है इंसान होने में।

उदय वीर सिंह।

शनिवार, 14 अगस्त 2021

संवेददना मर गई...










संवेदना मर गयी तो त्राशदी ही हाथ आएगी।

आज सत्ता की जंग कल मौत मुस्करायेगी।

वक्त की आहटों को जब हमने सुना नहीं,

रेत पर कितना लिखो लहर बहाले जाएगी।

जब भी उगेंगे मिट्टी में ही उगेंगे फ़सलो फूल,

पत्थरों की ये हवस जीवन कहाँ ले जाएगी।

इंसानियत की हवा से वैर इतना क्यों है जी,

आदमी से आदमीकी नफरत क्या बनाएगी।

उदय वीर सिंह।

बुधवार, 11 अगस्त 2021

खेत खलिहान के देवों की...








अगर नूर है आंखों में दिखालाई देना चाहिए
देश के इन सेवादारों की परछाईं होना चाहिए।
भीख नहीं वो निज-श्रम की कीमत मांग रहे हैं,
खेत खलिहान के देवों की भरपाई होना चाहिए।
महलों के रहने वालों से इनका गिला नहीं है,
तन-मन से दरवेेशो की सच्चेमन सुनवाई होनी चाहिए।

उदय वीर सिंह।

मंगलवार, 10 अगस्त 2021

कैसे पथ समतल दोगे...

 








.......✍️

पांवो की जूती नहीं है वक्त,ले पहना और चल दोगे।

हिसाब मुक़र्रर कामिल है, आज नहीं तो कल दोगे।

बिखरी-बिखरी सांसों का सहते आघात अहसासों का,

वो निश्छल तन मन के नायक कैसे मैला आँचल दोगे।

टूटेगी हर दीवार ,परिधि ,जब लेगी अंगड़ाई तन्मयता,

पर्वत ,खायीं निर्मित कर ,कैसे पथ समतल दोगे।

काला अतीत आज भी धुंधला मानस में बौनापन है

आडंबर का दर्शन लेकर, तुम कैसे कल उज्वल दोगे।

उदय वीर सिंह।

शनिवार, 7 अगस्त 2021

गुलिस्तां तूफान के हक में...

 

फ़ैसला निजाम के हक़ में।
दर्द साराआवाम के हक़ में।
जमीं आई बागवान के हिस्से,
गुलिस्तां तूफ़ान के हक में।
पसीना मेहनतकश के हिस्से,
शोहरत सुल्तान के हक़ में।
भरोषा था जिन्हें सितम पर,
वो गये बे-ईमान के हक में।
लिएअमन का इश्तिहार गले,
मौत लिखा गुलफ़ाम के हक़ में।
बे-जुबान हो गये न जाने क्यों
था बोलना हिंदुस्तान के हक में।
उदय वीर सिंह ।



गुरुवार, 5 अगस्त 2021

डर जाने के बाद...



टुकड़े ही उठाएंगे बिखर जाने के बाद।

घर दिखाई देता है उतर जाने के बाद।

पाएंगे सौगात जी कफन में लपेट कर,

बे-वजूद हो जाएंगे डर जाने के बाद ।

बाद रुख़्सती के कौन रोता है उम्र भर,

रोते कुछ देर तक ख़बर आने के बाद।

बे-जुबान शहर,तन्हा बोलता रह गया,

इमदाद आयी भी तो मर जाने के बाद।

उदय वीर सिंह।

बुधवार, 4 अगस्त 2021

दरबारों के शान शौक ...

 


दरबारों की शान शौक दरबारी लिखते हैं सौदे का सामान प्रीत व्यापारी लिखते हैं जीवन हर पल समिधा यज्ञ सृजन की , याचन की वृत्ति भीख भिखारी लिखते हैं - उदय वीर सिंह

सोमवार, 2 अगस्त 2021

मेरा शहर मुझसे अनजान हो गया है...

.......✍️
ये शहर मेरा मुझसेअनजान हो गया है।
एक भरोषा था कहीं गुमनाम हो गया है।
पगडंडियां ही सही दिल को जोड़ती थीं,
अब बे-मोड़ हाईवे का निर्मान हो गया है।
सदाआयी पड़ोसी की मोहल्ला सजग हुआ
अख़बारी खबर का अब इंतजाम हो गया है।
शुक्र है हम चले कुछ तरक्की की राह पर
ईमान बाजार का सस्ता सामान हो गया है।
उदय वीर सिंह।

शनिवार, 31 जुलाई 2021

प्रवक्ता आप हो गए...

 

बंद कर मेरी जुबान,मेरे प्रवक्ता आप हो गए।
मैं घर का मुखिया था,और सत्ता आप हो गए।
मुंसिफ सुनना चाहता था मेरी आप बीती,
मैं सुनाता दर्द कि मेरे अधिवक्ता आप हो गए।
कोई रोये भी तो आप से पूछ वरनाअपराध
मैं चेतन से जड़ हुआ,विधि-वेत्ता आप हो गए।
भूख बलात्कार माबलिंचिंग,पीड़त आपका शत्रु
वीजेता पक्ष का हरावल दस्ता आप हो गए।
उदय वीर सिंह।

गुरुवार, 29 जुलाई 2021

आवाज तन्हां आपकी...

 .......✍️

कहकशाँ में रह गयी आवाज़ तन्हां आपकी ।
बुलंदियों की दौड़ में परवाज़ तन्हा आपकी।
देखा नहीं उनकी तरफ जो मुंतजिर थे आपके,
मुंतजिर हैं आप,कितनी आंख तन्हा आपकी।
हवा चली तूफान होकर बस्तियां बर्बाद हैं,
आपका भी घर उड़ा हर बात तन्हा आपकी।
घर छोड़कर शामिल हुए भीड़ की आगोश में,
दी भीड़ ने पत्थरों की सौगात तन्हां आपकी।
उदय वीर सिंह ।

रविवार, 25 जुलाई 2021

दीद भी लिखा होगा...


लिखा है 
बद्द-नसीब तो खुश-नसीब भी लिखा होगा।

वो ख़ुदा है आज गर्दीशी तो कल ईद भी लिखा होगा।

कब तलक खेलेगी सूरत मंजिल की लुका-छिपी,

हो भले ही हजार पर्दों में,कल दीद भी लिखा होगा।

कौन कहता है वरक हर्फों सियाही बदलेंगे नहीं,

आज लिखा है मुश्किल तो कल मुफ़ीद भी लिखा होगा।

उदय वीर सिंह।

रविवार, 20 जून 2021

सज़ा जमाने भर की...



गुनाह था रोने का सजा जमाने भर की।

रोटी ख़्वाब में पाया था वो खाने भर की।

कहा हसरतों कोअपना समझकर दौर से,

मयस्सर न हुई जमीं सिर छुपाने भर की।

हकपसंदों की सतर में वो जैसे खड़ा हुआ,

कट गई गर्दन वीर, देर थी उठाने भर की।

वो दौरे यतिमी में रहा दूर दरबार से रहकर,

खुली नसीब देरथी कीमत चुकाने भर की।

बिखर गई कई टुकड़ों में हद समेटी हुई,

सिर्फ़ देर थी दर से मैयत उठाने भर की।

उदय वीर सिंह ।

तेरे ग़म में बराबर ...

मैं कहूँ न कहूँ अपने ग़म साथिया,
तेरे ग़म में बराबर का हकदार हूँ।
किसने लिखा हमको मालूम नहीं,
कहानी का मैं भी एक किरदार हूँ।
हो रहे कत्ल को देखता रह गया,
उस मंजर का मैं भी गुनाहगार हूँ।
न उठेगी नज़र न लिखेगी कलम,
कैसे कह दूं वफ़ा से वफ़ादार हूँ।
उदय वीर सिंह ।


रविवार, 13 जून 2021

मदिरालय की पौड़ी...


मदिरालय की पौड़ी तेरी पीड़ा कौन पढ़ेगा।
शिला खड़ी औजार नहीं मूर्ति कौन गढ़ेगा।
बंद पड़े दरवाजों से फ़रियाद लगाने वाले,
संवेदन विस्थापित है वेदन कौन सुनेगा।
भरा नीर ग्रंथालय में,कहते नयन केआंसू ,
लाचारी में स्वर-व्यंजन चिन्तन कौन लिखेगा।
तक्षशिला नालंदा की ईंट गयीं स्मृतियों से,
आत्म-मुग्धता त्याग,सत-पथ कौन वरेगा।
उदय वीर सिंह ।

ताज पैरहन है सेवादारी का..


आज जो कहा है आपने ,कल आपको सुनना होगा।
बुलंदी ही कुछ ऐसी है,नीचे आसमान के रहना होगा।
सवाल आज भी वही हैं जो कल पूछा था आपने,
अंधेरा है तो हर हाल में चिराग़ों को जलना होगा।
तूफान की भी उम्र लिखी है उसके उठने से पहले,
शमशान गवाह है,जलाने वाले को भी जलना होगा।
जुल्म-ए-तख्त की हिमायत जत्थेदार नहीं करते,
ताज पैरहन है सेवादारी का,सेवादार बनना होगा।
उदय वीर सिंह ।

रविवार, 23 मई 2021

अमन नहीं छोड़ा..


कीमत चुकाई है पर अमन नहीं छोड़ा।

मांगा वक्त ने दिया,इम्तिहान नहीं छोड़ा।

परिंदों की शर्तों पर शाखें नहीं उगतीं,

हमने तन,धन छोड़ा वतन नहीं छोड़ा।

थक गए आंधी तूफान भी दर आते-आते

हम बनाते रहे हैं घर सृजन नहीं छोड़ा।

एक दौर भी था मेरे हक से मुकर गया,

छोड़ा तो तख्त छोड़ा सतनाम नहीं छोड़ा।

उदय वीर सिंह ।

शनिवार, 15 मई 2021

 🙏नमस्कार मित्रों !

ये ज़ख्म भी भर जाएंगे वो खंजर भी टूटेगा।

आज आग बरसी है,बादल पानी भी बरसेगा।

ये दिल मुरीद है हौसलों का वीर झुकता नहीं,

आज अश्क हैं कल हयाती मंजर भी देखेगा।

सफ़र में रहजन ही नहीं सज्जन भी मिलते हैं,

काफ़िला हरहाल में अपनी मंजिल को पहुंचेगा।

उदय वीर सिंह


शनिवार, 8 मई 2021

हौसला चाहिए....।



हौसले साथ हैं , हौसला चाहिए।

हौसलों के सिवा और क्या चाहिए।

ये है मौसम तेज़ाबी न भींगे कोई,

घोर विपदा में सबका भला चाहिए।

हाथ कमज़र्फ जिनके गिला क्या करें,

प्रीत दिल से रहे सिलसिला चाहिए।

रंक-राजा न पहचानती है वबा,

लोड़बन्दों को हर दर खुला चाहिए।

हर अंधेरे से जीतेगी इंसानियत,

हर चौखट पर दिया जला चाहिए।

उदय वीर सिंह।