शनिवार, 13 फ़रवरी 2021

 🙏 नमस्कार मित्रों !

ढूंढती रह जाये जिंदगी ,वो सवाल रचते रहे।

भोर की तलाश में उम्मीद के दीये जलते रहे।

लौट कर आयेंगे परवाज से परिंदे जमीन पर, 

बड़े मजबूत धागों से शिकारी जाल बुनते रहे।

संवेदनाओं के पीछे का मजमून बारूदी था ,

लिखा रेशमी वरक पर,जिसे सौगात समझते रहे।

सिर पर सामान तो था बेशक पर अपना नहीं ,

परायी मंजिल,लिए मुट्ठीभर अरमान चलते रहे-

उदय वीर सिंह।