रविवार, 25 अप्रैल 2021

रह सकते हैं बगैर ताज के भी .....


नहीं पाओगे सिर्फ एक ही है

हिन्दुस्तान मत बेचो
रह सकते हैं बगैर ताज के भी
ईमान मत बेचो
जर्रा जर्रा लाल है लहू से सींचा गया
वारिस हो वलिदानियों के
सम्मान मत बेचो -
जमीने जमीर से इंसानियत की
फसल होगी
तरस जाओगे प्यार के दो बोल को
इंसान मत बेचो -
फानी है जिंदगी तख्तो-ताज की
बात क्या
अपनी सियासती हवस में रामो-
रहमान मत बेचो -
उदय वीर सिंह

बुधवार, 14 अप्रैल 2021

दोपहर में शाम हो जाना



नियति नहीं साज़िश है दोपहर में शाम हो जाना।

आग को सह देना है,हवा का बेलगाम हो जाना।

माज़ी खड़ा है लिए तख्तियों पर अपनी आवाज,

जहन्नम है,जुबान वालों का बेजुबान हो जाना ।

आग चूल्हों में जले तो ईद बैसाखी दिवाली है,

लगी पेट तो लाज़िमी है दौर का हैवान हो जाना

नफ़रत की जमीन पर ज़हर की तिजारत है ,

इंसानियत से दूरी का जमीं आसमान हो जाना।

उदय वीर सिंह।