कीमत चुकाई है पर अमन नहीं छोड़ा।
मांगा वक्त ने दिया,इम्तिहान नहीं छोड़ा।
परिंदों की शर्तों पर शाखें नहीं उगतीं,
हमने तन,धन छोड़ा वतन नहीं छोड़ा।
थक गए आंधी तूफान भी दर आते-आते
हम बनाते रहे हैं घर सृजन नहीं छोड़ा।
एक दौर भी था मेरे हक से मुकर गया,
छोड़ा तो तख्त छोड़ा सतनाम नहीं छोड़ा।
उदय वीर सिंह ।