शनिवार, 31 जुलाई 2021

प्रवक्ता आप हो गए...

 

बंद कर मेरी जुबान,मेरे प्रवक्ता आप हो गए।
मैं घर का मुखिया था,और सत्ता आप हो गए।
मुंसिफ सुनना चाहता था मेरी आप बीती,
मैं सुनाता दर्द कि मेरे अधिवक्ता आप हो गए।
कोई रोये भी तो आप से पूछ वरनाअपराध
मैं चेतन से जड़ हुआ,विधि-वेत्ता आप हो गए।
भूख बलात्कार माबलिंचिंग,पीड़त आपका शत्रु
वीजेता पक्ष का हरावल दस्ता आप हो गए।
उदय वीर सिंह।

गुरुवार, 29 जुलाई 2021

आवाज तन्हां आपकी...

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कहकशाँ में रह गयी आवाज़ तन्हां आपकी ।
बुलंदियों की दौड़ में परवाज़ तन्हा आपकी।
देखा नहीं उनकी तरफ जो मुंतजिर थे आपके,
मुंतजिर हैं आप,कितनी आंख तन्हा आपकी।
हवा चली तूफान होकर बस्तियां बर्बाद हैं,
आपका भी घर उड़ा हर बात तन्हा आपकी।
घर छोड़कर शामिल हुए भीड़ की आगोश में,
दी भीड़ ने पत्थरों की सौगात तन्हां आपकी।
उदय वीर सिंह ।

रविवार, 25 जुलाई 2021

दीद भी लिखा होगा...


लिखा है 
बद्द-नसीब तो खुश-नसीब भी लिखा होगा।

वो ख़ुदा है आज गर्दीशी तो कल ईद भी लिखा होगा।

कब तलक खेलेगी सूरत मंजिल की लुका-छिपी,

हो भले ही हजार पर्दों में,कल दीद भी लिखा होगा।

कौन कहता है वरक हर्फों सियाही बदलेंगे नहीं,

आज लिखा है मुश्किल तो कल मुफ़ीद भी लिखा होगा।

उदय वीर सिंह।