........,,✍️
भरोषा था अपनों पर,
टूटता चला गया।
आयी गर्दिशी तो हाथ,
छूटता चला गया।
मुखबिरी अपनों ने क़ी,
गैर लूटता चला गया।
कच्चा घड़ा था वो नेह,
बूंद पड़ी गलता चला गया।
न बहा गर्दिशी के दौर,
आज बहता चला गया।
पीर में कोई बुलबुला था वीर,
फूटता चला गया।
उदय वीर सिंह।
4 टिप्पणियां:
वाह
भरोसा
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 25 अक्टूबर 2021 को साझा की गयी है....
पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
एक टिप्पणी भेजें